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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


सूबेदार लोचनदास को जब कर्णसिंह की विजय का हाल मालूम हुआ तो उसने भी विद्रोह करने की ठानी। अपनी फ़ौज लेकर राजधानी पर चढ़ दौड़ा। मलका ने अबकी जान-तोड़ मुकाबला करने की ठानी। सिपाहियों को ख़ूब ललकारा ओर उन्हें लोचनदास के मुकाबले में खड़ा किया मगर वाह री हमलावन फ़ौज! न कहीं सवार, न कहीं प्यादे, न तोप, न बन्दूक, न हरबे, न हथियार, सिपाहियों की जगह सुन्दर नर्तकियों के गोल थे और थियेटर के एक्टर। सवारों की जगह भांडों और बहुरूपियों के ग़ोल। मोर्चों की जगह तीतर और बटेरों के जोड़ छूटे हुए थे तो बन्दूक की जगह सर्कस ओर बाइसकोप के खेमे पढ़े थे। कहीं हीरे-जवाहरात अपनी आब-ताब दिखा रहे थे, कहीं तरह-तरह के चरिन्दों-परिन्दों की नुमाइश खुली हुई थी। मैदान के एक हिस्से में धरती की अजीब-अजीब चीजें, झरने और बर्फिस्तानी चोटियाँ और बर्फ़ के पहाड़, पेरिस का बाज़ार, लन्दन का एक्स्चेंज या सटन की मंडियाँ, अफ्रीका के जंगल, सहारा के रेगिस्तान, जापान की गुलकारियाँ, चीन के दरियाई शहर, दक्षिण अमरीका के आदमखोर, क़ाफ़ की परियां, लैपलैण्ड के सुमूरपोश इन्सान और ऐसे सैकड़ों विचित्र आकर्षक दृश्य चलते-फिरते दिखायी पड़ते थे। मलका की फ़ौज यह नज्जा़रा देखते ही बेसुध होकर उसकी तरफ़ दौड़ी। किसी को सर-पैर का ख़याल न रहा। लोगों ने बन्दूकें फेंक दीं, तलवारें और किरचें उतार फेंकीं और बेतहाशा इन दृश्यों के चारों तरफ़ जमा हो गये। कोई नाचने वालियों की मीठी अदाओं ओर नाजुक चलन पर दिल दे बैठा, कोई थियेटर के तमाशों पर रीझा। कुछ लोग तीतरों और बटेरों के जोड़ देखने लगे और सब के सब चित्र-लिखित-से मन्त्रमुग्ध खड़े रह गये। मलका अपने हवाई जहाज पर बैठी कभी थियेटर की तरफ़ जाती कभी सर्कस की तरफ़ दौड़ती, यहाँ तक कि वह भी बेहोश हो गयी।

लोचनदास जब विजय करता हुआ शाही महल में दाख़िल हो गया तो मलका की आँखें खुलीं। उसने कहा—हाय, वह तमाशे कहाँ गये, वह सुन्दर-सुन्दर दृश्य, वह लुभावने दृश्य कहाँ गायब हो गये, मेरा राज जाये, पाट जाये लेकिन मैं यह सैर ज़रूर देखूँगी। मुझे आज मालूम हुआ कि ज़िन्दगी में क्या-क्या मज़े हैं!

सिपाही भी जागे। उन्होंने एक स्वर से कहा—हम वही सैर और तमाशे देखेंगे, हमें लड़ाई-भिड़ाई से कुछ मतलब नहीं, हमको आज़ादी की परवाह नहीं, हम गुलाम होकर रहेंगे, पैरों में बेड़ियां पहनेंगे पर इन दिलफरेबियों के बगैर नहीं रह सकेंगे।

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