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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मलका की फ़ौज यह संजीवनी सुगन्ध सूंघते ही मतवाली हो गयी। लोगों ने हथियार फेंक दिये और इन स्वादिष्ट पदार्थों की ओर दौड़े, कोई हलुवे पर गिरा, और कोई मलाई पर टूटा, किसी ने कोरमे और कबाब पर हाथ बढ़ाये, कोई खुबानी और अंगूर चखने लगा, कोई कश्मीरी मुरब्बों पर लपका, सारी फ़ौज भिखमंगों की तरह हाथ फैलाये यह नेमतें माँगती थी और बेहद चाव से खाती थी। एक-एक कौर के लिए, एक चमचा फीरनी के लिए, शराब के एक प्याले के लिए खुशामदें करते थे, नाकें रगड़ते थे, सिजदे करते थे। यहाँ तक कि सारी फ़ौज पर एक नशा छा गया, बेदम होकर गिर पड़ी। मलका भी इटली के मुरब्बों के सामने दामन फैला-फैलाकर मिन्नतें करती और कहती थी कि सिर्फ़ एक लुकमा और एक प्याला दो और मेरा राज लो, पाट लो, मेरा सब कुछ ले लो लेकिन मुझे जी-भर खा-पी लेने दो। यहाँ तक कि वह भी बेहोश होकर गिर पड़ी।

मलका की हालत अब बेहद दर्दनाक थी। उसकी सल्तनत का एक छोटा-सा हिस्सा दुश्मनों के हाथ से बचा था। उसे एक दम के लिए भी इस गुलामी से नजात न मिलती। कभी कर्णसिंह के दरबार में हाजिर होती, कभी मिर्जा शमीम की खुशामद करती, इसके बगैर उसे चैन न आता। हाँ, जब कभी इस मुसाहिबी और जिल्लत से उसकी तबियत थक जाती तो वह अकेले बैठकर घंटों रोती और चाहती कि जाकर शाह मसरूर को मना लाऊँ। उसे यकीन था कि उनके आते ही बागी काफूर हो जायेंगे पर एक ही क्षण में उसकी तबियत बदल जाती। उसे अब किसी हालत पर चैन आता था।

अभी तक बुलहवस खाँ की स्वामिभक्ति में फ़र्क़ न आया था। लेकिन जब उसने सल्तनत की यह कमज़ोरी देखी तो वह भी बगावत कर बैठा। उसकी आजमाई हुई फ़ौज के मुकाबले में मलका की फ़ौज क्या ठहरती, पहले ही हमले में क़दम उखड़ गये। मलका खुद गिरफ़्तार हो गयी। बुलहवस खाँ ने उसे एक तिलस्माती कैदखाने में बंद कर दिया। सेवक वे स्वामी बन बैठा।

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