कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
‘आज विजयगढ़ से हमारी जंग छिड़ गयी, अब खुदा ने चाहा तो दुनिया जयगढ़ की तलवार का लोहा मान जाएगी। मंसूर का बेटा असकरी फ़तेह के दरबार का एक अदना दरबारी बन सकेगा और शायद मेरी वह दिली तमन्ना भी पूरी हो जो हमेशा मेरी रूह को तड़पाया करती है। शायद मैं मिर्जा मंसूर को फिर जयगढ़ की रियासत में एक ऊँची जगह पर बैठे देख सकूँ। हम मन्दौर से न बोलेंगे और आप भी हमें न छेड़िएगा लेकिन अगर खुदा न ख्वास्ता कोई मुसीबत आ ही पड़े तो आप मेरी यह मुहर जिस सिपाही या अफ़सर को दिखा देंगे वह आपकी इज्ज़त करेगा। और आपको मेरे कैम्प में पहुँचा देगा। मुझे यकीन है कि अगर ज़रूरत पड़े तो उस जयगढ़ के लिए जो आपके लिए इतना प्यारा है और उस असकरी के ख़ातिर जो आपके ज़िगर का टुकड़ा है, आप थोड़ी-सी तकलीफ़ से (मुमकिन है वह रूहानी तकलीफ़ हो) दरेग़ न फ़रमायेंगे।
इसके तीसरे दिन जयगढ़ की फ़ौज ने विजयगढ़ पर हमला किया और मन्दौर से पाँच मील के फ़ासले पर दोनों फौजों का मुक़ाबला हुआ। विजयगढ़ को अपने हवाई जहाजों, जहरीले गड्ढों और दूर तक मार करने वाली तोपों का घमण्ड था। जयगढ़ को अपनी फ़ौज की बहादुरी, जीवट, समझदारी और बुद्धि का भरोसा। विजयगढ़ की फ़ौज नियम और अनुशासन की गुलाम थी, जयगढ़ वाले ज़िम्मेदारी और तमीज़ के क़ायल। एक महीने तक दिन-रात, मार-काट के मार्के होते रहे। हमेशा आग और गोलों और जहरीली हवाओं का तूफ़ान उठा रहता। इन्सान थक जाता था, पर कले अथक थीं। जयगढ़ियों के हौसले पस्त हो गये, बार-बार हार पर हार खायी। असकरी को मालूम हुआ कि जि़म्मेदारी फ़तेह में चाहे करिश्मे कर दिखाये, पर शिकस्त में मैदान हुक्म की पाबन्दी ही के साथ रहता है।
जयगढ़ के अख़बारों ने मन्त्रियों पर हमले शुरू किये। असकरी सारी क़ौम की लानत-मलामत का निशाना बन गया। वही असकरी जिस पर जयगढ़ फ़िदा होता था, सबकी नज़रों का काँटा हो गया। अनाथ बच्चों के आँसू, विधवाओं की आहें, घायलों की चीख-पुकार, व्यापारियों की तबाही, राष्ट्र का अपमान—इन सबका कारण वही एक व्यक्ति असकरी था। क़ौम की अगुवाई सोने का राजसिंहासन भले ही हो पर फूलों की सेज वह हरगिज़ नहीं।
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