लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


—नींद तो आती ही होगी, कैसी ठंडी हवा चल रही है।

—जब हुजूर ही ने अभी तक आराम नहीं फ़रमाया तो गुलामों को क्योंकर नींद आती।

—मैं तुम्हें कुछ तकलीफ़ देना चाहता हूँ।

—कहिए।

—तुम्हारे साथ पाँच आदमी हैं, उन्हें लेकर ज़रा एक बार लश्कर का चक्कर लगा आओ। देखो, लोग क्या कर रहे हैं। अक्सर सिपाही रात को जुआ खेलते हैं। बाज़ आस-पास के इलाक़ों में जाकर ख़रमस्ती किया करते हैं। ज़रा होशियारी से काम करना।

मसरूर—मगर यहाँ मैदान ख़ाली हो जाएगा।

क़ासिम—मैं तुम्हारे आने तक ख़बरदार रहूँगा।

मसरूर—जो मर्जी हुजूर।

क़ासिम—मैंने तुम्हें मोतबर समझकर यह ख़िदमत सुपुर्द की है, इसका मुआवजा इंशाअल्ला तुम्हें सरकार से अता होगा।

मसरूर ने दबी ज़बान से कहा—बन्दा आपकी यह चालें सब समझता है। इंशाअल्ला सरकार से आपको भी इसका इनाम मिलेगा। और तब जोर से बोला—आपकी बड़ी मेहरबानी है।

एक लम्हें में पाँचों ख्वाजासरा लश्कर की तरफ़ चले। क़ासिम ने उन्हें जाते देखा। मैदान साफ़ हो गया। अब वह बेधड़क खेमें में जा सकता था। लेकिन अब क़ासिम को मालूम हुआ कि अन्दर जाना इतना आसान नहीं है जितना वह समझा था। गुनाह का पहलू उसकी नज़र से ओझल हो गया था। अब सिर्फ़ जाहिरी मुश्किलों पर निगाह थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book