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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


राजवती ने आश्चर्य से सिर ऊपर किया और कहा–‘यह क्या जीवननाथ! क्या शाही सेना आपको पाकर दुर्ग की ईंट न बजा देगी?

वीरमदेव ने ठंडी साँस भरी और कहा–‘अलाउद्दीन कलानौर नहीं, वरन् मुझे चाहता है।

‘और यदि वह आपको प्राप्त कर ले तो दुर्ग पर अधिकार न जमायेगा?’

‘यह नहीं कहा जा सकता है। हाँ, यदि मैं अपने आपको शाही सेना के अर्पण कर दूँ, तो संभव है, सेना हटा ली जाय।’

राजवती ने मन ही मन सोचा यदि कलानौर को भय नहीं, तो हमारे लिए इतना रक्त बहाने की क्या आवश्यकता है?

वीरमदेव ने कहा–‘प्रिये! तुम रातपूत स्त्री हो?’

‘हाँ।’

‘राजपूत मरने-मारने को उद्यत रहते हैं?’

‘हाँ।’

‘जाति पर प्राण निछावर कर सकते हैं?’

‘हाँ’।

‘मैं तुम्हारी वीरता की परीक्षा करना चाहता हूँ।’

राजवती ने संदेह भरी दृष्टि से अपने पति की ओर देखा और धीमे से कहा–मैं उद्यत हूँ।’

वीरमदेव ने कुछ देर सोचकर कहा–‘इस युद्ध को समाप्त करना तुम्हारे वश में है।’
राजवती समझ न सकी कि इसका क्या अभिप्राय है; चकित-सी होकर बोली–‘किस तरह?’

‘तुम्हें अपनी सबसे अधिक प्रिय वस्तु बलिदान करनी होगी।’

‘वह क्या?’

‘मुझे गिरफ़्तार करा दो, निर्दोष बच जायँगे ।’

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