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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


राजवती का कलेजा हिल गया। रोकर बोली–‘प्राणनाथ! मेरा मन कैस मानेगा?’

‘राजपूत की आन निभाओ।’

राजपूत ने कहा–‘आपकी इच्छा सिर आँखों पर, परंतु यह बोझ असह्य है।’

वीरमदेव ने प्रसन्न होकर राजवती को गले लगा लिया और मुँह चूमकर वे बाहर चले गये। राजवती भूमि पर लेटकर रोने लगी।

दो घंटे के पश्चात दुर्ग में एक तीर गिरा, जिसके साथ कागज लिपटा हुआ था। हरदेवसिंह ने खोलकर देखा। लिखा था–हम सिवा वीरमदेव के कुछ नहीं चाहते। उसे पाकर तत्काल घेरा हटा लेंगे।

यह पढ़ कर हरदेवसिंह का हृदय सूख गया। वीरमदेव को बुलाकर बोले–‘क्या तुमने मुसलमान सेना को कोई संदेश भेजा था?’

‘हाँ, क्या उत्तर आया है?’

हरदेवसिंह ने कागज वीरमदेव को दिया और फूट-फूटकर रोने लगे। रोते-रोते बोले–बेटा! यह क्या? तुमने यह क्या संकल्प किया है? अपने को गिरफ़्तार करा दोगे?’

वीरमदेव ने उत्तर दिया–‘पिता जी! यह सब कुछ केवल मेरे लिए है! यदि आन का प्रश्न होता, दुर्ग की संरक्षा का प्रश्न होता, तो बच्चा-बच्चा न्योछावर हो जाता, मुझे आशंका न थी। परंतु अब कैसे चुप रहूँ, यह सब रक्तपात केवल मेरे लिए है। यह नहीं सहा जाता।’

उस रात्रि के अंधकार में दुर्ग का फाटक खुला और वीरमदेव ने अपने आपको मुसलमान सेनापति के अर्पण कर दिया। प्रातःकाल सेना ने दुर्ग का घिराव हटा लिया।

स्त्री का हृदय भी विचित्र वस्तु है। वह आज प्यार करती है, कल दुत्कार देती है। प्यार की खातिर स्त्री सब कुछ करने को तैयार हो जाती है, परंतु प्रतिकार के लिए उससे भी अधिक भयानक कर्म कर बैठती है।

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