लोगों की राय

कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

14 पाठक हैं

प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ



मधुआ

श्री जयंशकर प्रसाद

[ आपका जन्मस्थान काशी है। आप बड़े सहृदय, मिलनसार और निरभिमानी थे। अँगरेजी, उर्दू और बँगला के आप अच्छे ज्ञाता थे। रहस्यवादी कवियों में आपका विशेष स्थान था। आधुनिक नाटककारों में आप सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं। कहानी लेखकों में आपका उच्च स्थान है। आपकी कहानियाँ भाव-प्रधान होती हैं। आप उपन्यास लिखने में भी सिद्वहस्त थे। निम्नलिखित आपकी प्रमुख रचनाएँ हैः–
नाटक–विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, अजातशत्रु, राज्यश्री, स्कन्दगुप्त और चन्द्रगुप्त।
उपन्यास–कंकाल और तितली।
गद्य संग्रह–आकाश-दीप, प्रतिध्वनि, छाया और आँधी! ]

‘आज सात दिन हो गये, पीने को कौन कहे, छुआ तक नहीं। आज सातवाँ दिन है सरकार!’

‘तुम झूठे हो। अभी तक तुम्हारे कपड़े से महँक आ रही है।’

‘वह...वह तो कई दिन हुए। सात दिन से ऊपर... कई दिन हुए–अँधेरे में बोतल उड़ेलने लगा। कपड़े पर गिर जाने से नशा भी न आया। और आपको कहने को क्या... कहूँ...सच मानिए, सात दिन–ठीक सात दिन से एक बूँद भी नहीं।’

ठाकुर सरदार सिंह हँसने लगे। लखनऊ में लड़का पढ़ता था। ठाकुर साहब भी कभी-कभी वहीं आ जाते। उनको कहानी सुनने का चसका था। खोजने पर यही शराबी मिला। वह रात को, दोपहर में, कभी-कभी सबेरे भी आ जाता। अपनी लच्छेदार कहानी सुनाकर ठाकुर का मनोविनोद करता।

ठाकुर ने हँसते हुए कहा–‘तो आज पियोगे न?’

‘झूठ कैसे कहूँ। आज तो जितना मिलेगा, सबकी पीऊँगा। सात दिन चने-चबेने पर बिताये हैं, किसलिए।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book