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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


पर वह समय ही कुछ ऐसा घटनापूर्ण था और सच्चे कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों का कुछ ऐसा टोटा था कि टोडरमल जैसे उत्साही सेवक को चैन से बैठना संभव न था। गुजरात से आया ही था कि बंगाल में फिर जोरशोर से आंधी उठी; पर इस बार उसका रंग कुछ और ही था। सेना और सरदार सेनापति से बागी हो गए थे। अकबर ने टोडरमल को रवाना किया और उसने इस विप्लव को ऐसी चुतराई और सुन्दर युक्तियों से ठंडा किया कि किसी को कानोकान खबर न हुई, नहीं तो दुश्मन कब सिर उठाने से बाज रहता! राजा से ईर्ष्या-द्वेष रखनेवाले कुछ पामरों ने घात लगाई थी कि सेना के निरीक्षण के समय राजा का काम तमाम कर दें, पर वह एक ही सयाना था, साफ़ निकल गया।

१५८२ ई० में आगरे को लौटा। अपनी सच्ची स्वामि भक्ति और सेवाओं के कारण राज्य का ‘दीवाने माल’ अथवा अर्थमंत्री बना दिया गया, और २१ सूबों पर उसकी क़लम दौड़ने लगी। इस समय से मृत्युकाल तक टोडरमल को अपनी क़लम का जौहर और राज्य-प्रबन्ध विषयक प्रतिभा के चमत्कार दिखाने का ख़ूब मौका मिला। केवल एक बार यूसुफ़ज़इयों की मुहिम में राजा मानसिंह को सहायतार्थ जाना पड़ा था।

यद्यपि राजा बहुत ही साधु स्वभाव और शुद्ध निश्छल हृदय का व्यक्ति था; फिर भी १५८९ ई० में किसी दुश्मन ने उस पर तलवार चलायी। सौभाग्यवश वह तो बाल-बाल बच गया, पर उसका फल एक अभागे खत्री बच्चे को भुगतना पड़ा। गहरा सन्देह है कि यह किसी द्वेष रखनेवाले सरदार या अधिकारी का इशारा था; संभवतः यह हमला मौत का ही था, क्योंकि इस घटना के थोड़े ही दिन बाद राजा टोडरमल को इस लोक से विदा हो जाना पड़ा। निर्दयी ने दूसरा हमला ज्वर के रूप में किया और अबकी जान लेकर ही छोड़ा।

ऐतिहासिकों ने टोडरमल पर खूब आलोचना-प्रत्यालोचना की है; पर जिन लोगों को उससे आत्यन्तिक मतभेद है, वह भी उसका भला ही मानते हैं। अकबर के समस्त बड़े अधिकारियों और सरदारों में वह सबसे अधिक सच्चा और विश्वासी शुभचिन्तक था। उनके सिवा और कोई मन्त्री, सूबेदार आदि ऐसा न था। जिसने दग़ा देने और नमकहरामी का धब्बा अपने ऊपर न लगाया हो। वही एक पुरुष है, जिसकी नेकनामी की चादर बगुले के पर की तरह स्वच्छ है रागद्वेष युक्त ऐतिहासिकों ने उस पर धब्बे लगाने की कोशिश जरूर की, पर विफल रहे।

टोडरमल की क़ारगुजारियों को बयान करना अकबर के राज्यकाल का इतिहास लिखना है। ऐसा कौन सा विभाग था—दीवानी, माल या सेना, जिस पर टोडरमल की कार्य-कुशलता और प्रबन्ध-पटुता की मुहर न लगी हो। शाही लश्कर पहले कोसों में उतरा करता था। हाथीख़ाना कुछ यहाँ है तो कुछ वहाँ। तोपखाने का एक हिस्सा इस सिरे पर, तो दूसरा उस सिरे पर। सारांश बड़ी अस्तव्यस्तता रहा करती थी। टोडरमल की नियमप्रिय प्रकृति ने पैदल, सवार, तोपखाना, रसद, बाजार, लश्कर आदि के उतारने के लिए व्यवस्थाएँ निकालीं। इसी सिलसिले में ‘आइने दाग़’ अर्थात् घोड़े पर दाग लगाने के नियम की चर्चा भी आवश्यक मालूम होती है। पहले स्थायी सेना न रखी जाती थी। सामन्तों और सरदारों को जागीरें मिल जाया करती थीं और उनको हुक्म था कि जब आज्ञा हो, अपनी रियासत से सेना के साथ दरबार में हाज़िर हुआ करें। सरदार इसमें दाँवपेंच निकालकर जेब भरते, हाज़िरी और जाँच के समय घोड़ों की नियत संख्या इधर-उधर से माँग-जाँचकर दिखा देते। जब यह बला सिर से टल जाती, तो फिर वही ढर्रा पकड़ लेते। टोडरमल ने इसका भी प्रतिकार किया कि जाँच के समय घोड़ों पर दाग़ लगा दिया जाता, जिसमें धोखेबाजी का कोई मौका न रहे।

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