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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


सिकन्दर लोदी के जमाने तक हिन्दू लोग आम तौर से फ़ारसी या अरबी न पढ़े थे, इन्हें ‘म्लेच्छ विद्या’ कहते थे। टोडरमल ने प्रस्ताव किया कि संपूर्ण भारत साम्राज्य के सब दफ्तर फ़ारसी में हो जाएँ। पहले तो हिन्दू इस योजना से चौंके, पर टोडरमल ने उनके दिलों में यह बात अच्छी तरह बैठा दी कि राजा की भाषा जीविका की कुंजी है। ऊँचे पद, अधिकार और सम्मान चाहते हो, तो राजभाषा सीखकर पा सकते हो। अकबर ने भी सहारा दिया। योजना चल निकली और कुछ ही साल के अरसे में बहुत हिन्दू फ़ारसीदाँ हो गए। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि टोडरमल उर्दू भाषा का पूर्व पुरुष है, क्योंकि यह उसी की दूरदर्शिता का फल है कि हिन्दुओं में फ़ारसी का चलन हुआ। फ़ारसी शब्द मामूली घरेलू बोलचाल में प्रयुक्त होने लगे, और इस प्रकार रेख़ते (उर्दू का पहला नाम जिसका अर्थ है मिली-जुली खिचड़ी भाषा, क्योंकि उर्दू भाषा अरबी, फ़ारसी, तुर्की, हिन्दी आदि शब्दों की खिचड़ी है।) से उर्दू की जड़ मजबूत हुई।
 
टोडरमल गणना शास्त्र—हिसाब-किताब—की विद्या में अपने समय का सर्वमान्य आचार्य था। पहले शाही गणना विभाग बिलकुल अव्यवस्थित था। कहीं काग़ज़ात फ़ारसी में थे। कहीं हिन्दी में। टोडरमल ने इस अस्तव्यस्त स्थिति को भी नियम-व्यवस्था की श्रृंखला में बाँधा। यद्यपि इस सम्बन्ध में ख़्वाज़ाशाह मंसूर मुजफ़्फ़र ख़ाँ और आसिफ़ ख़ाँ ने भी बड़े-बड़े काम किए, पर टोडरमल की कीर्ति की चमक-दमक के सामने उनका कुछ मूल्य न रहा। बहुत से नक़्शे और तालिकाओं के नमूने ‘आइने अकबरी’ में दर्ज हैं, आज भी उन्हीं की ख़ानापूरी की जाती है। यहां तक कि सांकेतिक शब्दावली में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

पर सबसे महान कार्य जो टोडरमल की यादगार है और जिसने सारे सभ्य जगत् में अर्थनीतिज्ञों में उसको विशिष्ट स्थान दे रखा है, उसका मालगुज़ारी का बन्दोबस्त है, जिसको संक्षेप में बता देना, विस्तार भय होते हुए भी, हम आवश्यक समझते हैं।

पहले मालगुज़ारी का प्रबन्ध कूते पर था। टोडरमल की सलाह से सारी अधिकृत भूमि की पैमाइश की गई। पहले ज़रीब रस्सी की होती थी, इससे सूखी और तर जमीन में अन्तर पड़ जाता था। इसलिए बाँस के टोंटों में लोहे की कड़ियाँ डालकर ज़रीबें तैयार की गईं। सारी सूखी और गीली ज़मीन मय पहाड़, जंगल, ऊसर, बंजर के नाप डाली गईं। कुछ गाँवों का परगना, कुछ परगनों की सरकार और कुछ सरकारों का एक सूबा ठहराया गया। बन्दोबस्त दस साला नियत हुआ। अब ३० साला नियत है। राजस्व का नियम यह बाँधा कि बारानी अर्थात् ऐसी जमीन में, जहाँ वर्षा के जल से अन्न उत्पन्न होता हो, आधा किसान का और आधा बादशाह का और सिंचाई वाली ज़मीन में हर खेत पर चौथाई ख़र्च और उसकी ख़रीदबेची की लागत लगाकर अनाज में एक तिहाई बादशाही। ईख, इत्यादि पर, जो आला जिन्स कहलाती हैं, और पानी, निगरानी, कमाई आदि की मेहनत अनाज से ज्यादा खाती हैं, प्रकार के अनुसार १।४, १।५, १।६, या १।७ हक़ बादशाही बाकी हक़ काश्तकार। ‘आईने अकबरी’ में इनके नियम जिन्सवार लिखे हैं।

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