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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


कमर– नहीं, तुझ पर अपनी बीबी का हक़ सबसे ज्यादा है।

वहब– नसीमा, खुदा के लिए…।

नसीमा– नहीं। मेरे प्यारे आक़ा, मुझे जिंदा छोड़कर नहीं।

[कमर चली जाती है। वहब सिर थामकर बैठ जाता है।]

नसीमा– प्यारे, तुम्हारी मुहब्बत की क़तावार हूँ, जो सजा चाहे दो। मुहब्बत खुदग़रज होती है। मैं अपने चमन को हवा के झोंकों से बचाना चाहती हूं। काश तकदीर ने मुझे इस गुलज़ार में न बिठाया होता, काश मैंने इस चमन में अपना घोंसला न बनाया होता, तो आज वर्क और सैयाद का इतना खौफ क्यों होता! मेरी बदौलत तुम्हें यह नदामत उठानी पड़ी काश मैं मर जाती!

[नसीमा वहब के पैरों पर सिर रख देती है।]

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