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कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511

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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


त्याग दो प्रकार के होते हैं–एक वह जो त्याग में आनन्द मानते हैं, जिनकी आत्मा को त्याग में सन्तोष और पूर्णता का अनुभव होता है, जिनके त्याग में उदारता और सौजन्य है। दूसरे वह, जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्थितियों से विद्रोह-मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं। अमर इसी तरह का त्यागी था।

स्वस्थ आदमी अगर नीम की पत्ती चबाता है, तो अपने स्वास्थ को बढ़ाने के लिए।
वह शौक से पत्तियाँ तोड़ लाता है, शौक से पीसता और शौक से पीता है, पर रोगी वही पत्तियाँ पीता है तो नाक सिकोड़कर, मुँह बनाकर, झुँझलाकर और अपनी तक़दीर को रोकर।

सुखदा जज साहब की पत्नी की सिफारिश से बालिका–विद्यालय में पचास रुपये पर नौकर हो गयी है। अमर दिल खोलकर तो कुछ कह नहीं सकता, पर मन में जलता रहता है। घर का सारा काम, बच्चे को सँभालना, रसोई पकाना, ज़रूरी चीज़ बाज़ार से मँगाना–यह सब उसके मत्थे है। सुखदा घर के कामों के नगीच नहीं जाती है। अमर आम कहता है, तो सुखदा इमली कहती है। दोनों में हमेशा खट-पट होती रहती है। सुखदा इस दरिद्रावस्था में भी उस पर शासन कर रही है। अमर कहता है, आधार सेर दूध काफी है, सुखदा कहती है, सेर भर आयेगा, और सेर भर ही मँगाती है। वह खुद दूध नहीं पीता, इस पर भी रोज लड़ाई होती है। वह कहता है, ग़रीब है, हमें मजूरों की तरह रहना चाहिए। वह कहती है, हम मजूर नहीं हैं, न मजूरों की तरह रहेंगे। अमर उसको अपने आत्म-विकास में बाधक समझता है और उस बाधा को हटा न सकने के कारण भीतर-ही-भीतर कुढ़ता है।
 
एक दिन बच्चे को खाँसी आने लगी। अमर बच्चे को लेकर एक होमियोपैथ के पास जाने को तैयार हुआ। सुखदा ने कहा-‘बच्चे को मत ले जाओ, हवा लगेगी। डॉक्टर को बुला लाओ। फ़ीस ही तो लेगा!’

अमर को मजबूर होकर डॉक्टर को बुलाना पड़ा। तीसरे दिन बच्चा अच्छा हो गया।

एक दिन ख़बर मिली, लाला समरकान्त को ज्वर आ गया है। अमरकान्त इस महीने भर में एक बार भी घर न गया था। यह ख़बर सुनकर भी न गया। वह मरें या जियें, उसे क्या करना है। उन्हें अपना धन प्यारा है, उसे छाती से लगाये रखें। और उन्हें किसी की ज़रूरत ही क्या।

पर सुखदा से न रहा गया। वह उसी वक़्त नैना को साथ लेकर चल दी।

अमर मन में जल-भुनकर रह गया।

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