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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


चक्रधर–मुझे यह सुनकर बहुत अफ़सोस हुआ। मुझे आपसे कामिल हमदर्दी है, आपका-सा इनसाफ़परबर आदमी इस वक़्त दुनिया में न होगा। अहिल्या अब कहाँ है?

ख्वाज़ा–इसी घर में। सुबह से कई बार कह चुका हूँ कि चल, तुझे मेरे घर पहुँचा आऊँ। जाती ही नहीं। बस, बैठी रो रही है।

चक्रधर का हृदय भय से काँप उठा। अहिल्या पर अवश्य ही हत्या का अभियोग चलाया जायेगा और न जाने क्या फैसला हो। चिन्तित स्वर से पूछा–अहिल्या पर तो अदालत में...

ख्वाज़ा–हरगिज़ नहीं। उसने हर एक लड़की के लिए नमूना पेश कर दिया है। उसने खून नहीं किया, क़त्ल नहीं किया, अपनी असमत की हिफाजत की, जो उसका फ़र्ज़ था। यह खुदाई कहर था, जो छुरी बनकर इसके सीने में चुभा। मुझे ज़रा भी मलाल नहीं है। खुदा की मर्ज़ी में इनसान को क्या दखल?

लाश उठायी गई। शोक समाज पीछे-पीछे चला। चक्रधर भी ख्वाज़ा साहब के साथ कब्रिस्तान तक गये। रास्ते में किसी ने बातचीत न की। जिस वक़्त लाश क़ब्र में उतारी गई, ख्वाज़ा साहब रो पडे़। हाथों से मिट्टी दे रहे थे और आँखों से आँसू की बूँदे मरनेवाले की लाश पर गिर रही थीं। यह क्षमा के आँसू थे। पिता ने पुत्र को क्षमा कर दिया था। चक्रधर भी आँसुओं को न रोक सके। आह! इस देवता स्वरूप मनुष्य पर इतनी घोर विपत्ति!

दोपहर होते-होते लोग घर लौटे। ख्वाज़ा साहब ज़रा दम लेकर बोले–आओ बेटा, तुम्हें अहिल्या के पास ले चलूँ। उसे ज़रा तस्क़ीन दो। मैंने जिस दिन से उसे भाभी को सौंपा, यह अहद किया था कि इसकी शादी मैं करूँगा। मुझे मौक़ा दो कि अपना अहद पूरा करूँ।

यह कहकर ख्वाज़ा साहब ने चक्रधर का हाथ पकड़ लिया और अन्दर चले। चक्रधर का हृदय बाँसों उछल रहा था। अहिल्या के दर्शनों के लिए वह इतने उत्सुक कभी न थे। उन्हें ऐसा अनुमान हो रहा था कि अब उसके मुख पर माधुर्य की जगह तेज़स्विता का आभास होगा, कोमल नेत्र कठोर हो गए होंगे, मगर जब उस पर निगाह पड़ी, तो देखा–वही सरल, मधुर छवि थी, वही करुण कोमल नेत्र, वही शीतल मधुर वाणी। वह एक खिड़की के सामने खड़ी बगीचे की ओर ताक रही थी। सहसा चक्रधर को देखकर वह चौंक पड़ी और घूँघट में मुँह छिपा लिया। फिर एक ही क्षण के बाद उनके पैरों को पकड़कर अश्रुधारा से धोने लगी। उन चरणों पर सिर रखे हुए स्वर्गीय सांत्वना, एक दैवी शक्ति, एक धैर्यमय तृप्ति का अनुभव हो रहा था।

चक्रधर ने कहा–अहिल्या, तुमने जिस वीरता से आत्मरक्षा की, उसके लिए तुम्हें बधाई देता हूँ। तुमने वीर क्षत्राणियों की कीर्ति को उज्जवल कर दिया। दु:ख है, तो इतना ही कि ख्वाज़ा साहब का सर्वनाश हो गया।

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