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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


फतहचन्द—जब मैंने कोई कसूर किया हो तब न!

साहब—चपरासी! इस सुअर का कान पकड़ो।

चपरासी ने दबी आवाज में कहा—हुजूर,यह भी मेरे अफसर हैं, मैं इनका कान कैसे पकड़ूँ

साहब—हम कहता है, इसका कान पकड़ो नहीं तो हम तुमको हंटरों से मारेगा!  

चपरासी—हुजूर मैं यहाँ नौकरी करने आया हूँ। मार खाने नहीं। मैं भी इज्जददार आदमी हूँ। हुजूर, अपनी नौकरी ले लें! आप जो हुक्म दें, वह बजा लाने को हाजिर हूँ। लेकिन किसी की इज्जत नहीं बिगाड़ सकता। नौकरी तो चार दिन की है। चार दिन के लिए क्यों जमाने भर से बिगाड़ करें।

साहब अब क्रोध को न बर्दाश्त कर सके। हंटर लेकर दौड़े! चपरासी ने देखा यहाँ खड़े रहने में खैरियत नहीं है तो भाग खड़ा हुआ। फतहचन्द अभी तक चुपचाप खड़े थे। साहब चपरासी को न पाकर उनके पास आया और उनके दोनों कान पकड़कर हिला दिया। बोला—तुम सुअर गुस्ताखी करता है जाकर आफिस से फाइल लाओ।

फतहचन्द ने कान सहलाते हुए कहा कौन—सी फाइल लाऊँ, हुजूर

साहब—फाइल-फाइल और कौन-सा फाइल तुम बहरा है, सुनता नहीं, हम फाइल माँगता है।

फतहचन्द ने किसी तरह दिलेर होकर कह—आप कौन-सा फाइल माँगते हैं

साहब—वही फाइल, जो हम माँगता है। वही फाइल लाओ। अभी लाओ!

बेचारे फतहचन्द को अब और कुछ पूछने की हिम्मत न हुई। साहब बहादुर एक तो योंही तेज मिजाज थे इस पर हुकूमत का घमंड और सबसे बढ़कर शराब का नशा। हंटर लेकर पिल पड़ते, तो बेचारे क्या कर लेते। चुपके से दफ्तर की तरफ चल पड़े।

साहब  ने कहा—दौड़कर जाओ—दौड़ो!

फतहचन्द ने कहा—हुजूर मुझसे दौड़ा नहीं जाता।

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