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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


फतहचन्द ने खड़े-खड़े डंडा सँभाल कर कहा—तुमने मुझसे अभी फाइल माँगा था, वही फाइल लेकर आया हूँ। खाना खा लो, तो दिखाऊँ। तब तक मैं बैठा हूँ, इत्मीनान से खाओ शायद यह तुम्हारा आखिरी खाना होगा। इसी कारण खूब पेट भर खा लो।

साहब सन्नाटे में आ गये। फतहचन्द की तरफ डर और क्रोध की दृष्टि से देखकर काँप उठे। फतहचन्द के चेहरे पर पक्का इरादा झलक रहा था। साहब समझ गये, वह मनुष्य इस समय मरने-मारने के लिए तैयार होकर आया है। ताकत में फतहचन्द उनके पासंग भी नहीं थे। लेकिन यह निश्चय था कि वह ईंट का जवाब पत्थर से नहीं, बल्कि लोहे से देने को तैयार हैं। यदि वह फतहचन्द को बुरा-भला कहते हैं, तो क्या आश्चर्य है कि वह डंडा लेकर पिल पड़े, हाथा-पाई करने में यद्यपि उन्हें जीतने में जरा भी संदेह नहीं था; लेकिन बैठे-बिठाये डंडे खाना भी तो कोई बुद्धिमानी नहीं है। कुत्ते को आप डंडे से मारिये, ठुकराइये, जो चाहे कीजिये, मगर उसी समय तक, जब तक वह गुर्राता नहीं। एक बार गुर्राकर दौड़ न पड़े, तो फिर देखें, कि आपकी हिम्मत कहाँ जाती है यही हाल उस वक्त साहब बदादुर का था। जब तक यकीन था कि फतहचन्द झिड़की, घुड़की, हंटर, ठोकर सब कुछ खामोशी से सह लेगा, तब तक आप शेर थे; अब वह त्योरियाँ बदले, डंडा सँभाले, बिल्ली की तरह घात लगाये खड़ा है। जबान से कोई कड़ा शब्द निकला और उसने डंडा चलाया। वह अधिक-से-अधिक उसे बरखास्त कर सकते हैं। अगर मारते हैं तो मार खाने का भी डर है। उस पर फौजदारी का मुकदमा दायर हो जाने का अंदेशा—माना कि वह अपने प्रभाव और ताकत से अन्त में फतहचन्द को जेल डलवा देंगे; परन्तु परेशानियाँ और बदनामी से किसी तरह नहीं बच सकते थे। एक बुद्धिमान और दूरन्देश आदमी की तरह उन्होंने यह कहा—ओहो हम समझ गया, आप हमसे नाराज हैं। हमने क्या आपको कुछ कहा है, आप क्यों हमसे नाराज हैं

फतहचन्द ने तन कर कहा—तुमने अभी आध घण्टा पहले मेरे कान पकड़े थे और मुझसे सैकड़ों ऊल-जलूल बातें कहीं थीं। क्या इतनी जल्दी भूल गये

साहब—मैंने आपका कान पकड़ा, आ-हा-हा-हा-हा! मैंने आपका कान पकड़ा, आ-हा-हा-हा! क्या मजाक है ‍ क्या मैं पागल हूँ या दीवाना

फतहचन्द—तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ चपरासी गवाह है। आपके नौकर-चाकर भी देख रहे थे।

साहब—कब का बात है

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