लोगों की राय

कहानी संग्रह >> पाँच फूल (कहानियाँ)

पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

425 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


श्यामा—अगर यह भावी थी, तो यह भी भावी है कि मैं अपना अधम जीवन उस पवित्र आत्मा के शोक में काटूँ जिसका मैंने सदैव निरादर किया।

यह कहते-कहते श्यामा का शोकोद्गार जो अब तक क्रोध और घृणा के नीचे दबा हुआ था, उबल पड़ा और वह खजाँचन्द के निस्पन्द हाथों को अपने गले में डालकर रोने लगी।

चारों पठान यह अलौकिक अनुराग और आत्मसमर्पण देखकर करुणाँद्र हो गये। सरदार ने धर्मदास से कहा—तुम इस पाकीजा खातून से कहो हमारे साथ चले। हमारी जात से इसे कोई तकलीफ न होगी। हम इसकी दिल से इज्जत करेंगे।

धर्मदास के हदय में ईर्ष्या की आग धधक रही थी। वही रमणी जिसे वह अपनी समझे बैठा था, इस वक्त उसका मुँह भी नहीं देखना चाहती थी। बोला श्यामा, तुम चाहो इस लाश पर आँसुओं की नदी बहा दो, पर यह जिन्दा न होगी। यहाँ से चलने की तैयारी करो। मैं साथ के और लोगों को भी जाकर भी समझता हूँ। ये खान लोग हमारी रक्षा करने का जिम्मा ले रहे हैं। हमारी जायदाद, जमीन, दौलत सब हमको मिल जायगी। खजाँचन्द की दौलत के भी हम मालिक होंगे। अब देर न करो। रोने धोने से अब कुछ हासिल नहीं।

श्यामा ने धर्मदास को आग्नेय नेत्रों से देखकर कहा—और इस वापसी की कीमत क्या देनी होगी? वही, जो तुमने दी है?

धर्मदास यह व्यंग्य न समझ सका, बोला—मैंने तो कोई कीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या?

श्यामा—ऐसा न कहो। तुम्हारे पास वह खजाना था, जो तुम्हें आज कई लाख वर्ष हुए, ऋषियों ने प्रदान किया था, जिसकी रक्षा रघु और मनु, राम और कृष्ण, बुद्ध और शंकर, शिवाजी और गोविन्दसिंह ने की थी। उस मूल्य भण्डार को आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया। इन पाँवों घर लौटना तुम्हें मुबारक हो। तुम शौक से जाओ। जिन तलवारों ने वीर खजाँचन्द के जीवन का अन्त किया, उन्होंने मेरे प्रेम का भी फैसला कर दिया। जीवन में इस वीरात्मा का मैंने जो निरादर और अपमान किया, उसके साथ जो उदासीनता दिखायी, उसका अब मरने के बाद प्रायश्चित करूँगी। यह धर्म पर मरने वाला वीर था, धर्म को बेचनेवाला कायर नहीं। अगर तुममें अब भी शर्म और हया है, तो इसकी क्रिया-कर्म करने में मेरी मदद करो। और यदि तुम्हारे स्वामियों को यह भी पसंद न हो, तो रहने दो; मैं खुद सब कुछ कर लूँगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai