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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


धर्मदास एक क्षण के लिए चुप हो गया। फिर बोला—क्यों श्यामा, क्या अभी तुम्हारा दिल मेरी तरफ से साफ नहीं हुआ? तुमने मेरा अपराध क्षमा न किया?

श्यामा ने उदासीन भाव से कहा—मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी।

‘मैं अब भी हिन्दू हूँ। मैंने इस्लाम नहीं कबूल किया है।’

‘जानती हूँ।’

‘यह जानकर भी मुझ पर दया नहीं आती?’

श्यामा ने कठोर नेत्रों से देखा और उत्तेजित होकर बोली—तुम्हें अपने मुँह से ऐसी बातें निकालते शर्म नहीं आती। मैं उस धर्मवीर की ब्याहता हूँ, जिसने हिन्दू जाति का मुख उज्ज्वल किया है। तुम समझते हो वह मर गया? यह तुम्हारा भ्रम है। वह अमर है। मैं इस समय भी उसे स्वर्ग में देख रही हूँ। तुमने हिन्दू जाति को कलंकित किया है। मेरे सामने से दूर हो जाओ।

धर्मदास ने कुछ जवाब न दिया चुपके से उठ एक लम्बी साँस ली और एक तरफ चल दिया!

प्रातःकाल श्यामा पानी भरने जा रही थी, तब उसे रास्ते में एक लाश पड़ी हुई देखी। दो-चार गिद्ध उस पर मँडरा रहे थे। उसका हृदय धड़कने लगा। समीप जाकर देखा और पहचान गयी। यह धर्मदास की लाश थी।

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