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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस पर भी दावत समाप्त होने से पूर्व इरीन पुनः इन्द्र से मिली और कहने लगी, ‘‘यह बूढ़ा नवाब आपसे बातें बहुत करता रहा है। क्या कहता था?’’

‘‘कुछ नहीं।’’

‘‘आधा घण्टा से अधिक आप बातें करते रहे हैं। कुछ तो कहता होगा। मैं समझती हूँ कि आपको कह रहा होगा कि अगर जवान होता तो एक विवाह और कर लेता।’’

इन्द्रनारायण हँस पड़ा। हँसते हुए उसने कहा, ‘‘हाँ, यह तो कहा था और साथ ही यह भी कहा था कि कोई लड़का पैदा हो जाता तो वह अनवर साहब को डिसइनहैरिट (बेदखल) कर देता।’’

‘‘हाँ, वह इनसे नाराज है कि इन्होंने मुझको इतनी आजादी क्यों दे रखी है। वह चाहता है कि मैं बुर्का पहना करूँ और उनके हरम की चार-दीवारी के बाहर न निकलूँ।’’

‘‘यह उनके घर का रिवाज है।’’

‘‘मैंने नये रिवाज पैदा कर दिये हैं। वक्त आने पर उनके घर यही रिवाज बन जायेंगे।’’

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