लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रजनी लड़की के इस प्रकार युक्तियुक्त और सतर्कता के उत्तर सुनकर चकित रह गयी। वह विचार कर रही थी कि यह युक्ति तो ऐसे करती है जैसे वकालत पढ़ी है। उसने सुना था कि इन्द्र की बहू कुछ पढ़ी-लिखी नहीं है।

रजनी ने सब स्त्रियों को, जब दोनों पक्ष की वहाँ बैठी थीं, सम्बोधन कर कह दिया, ‘‘भाभी कहती है कि उसको घूँघट उठाने में लज्जा लगती है।’’

सब हँस पड़े। इन्द्र की बहू भी हँसती हुई प्रतीत हुई। इस पर रजनी ने कह दिया, ‘‘अपना मुख दिखाने में दो प्रकार की स्त्रियों को संकोच होता है–जो एक अति कुरूप होती हैं और दूसरी वे जो अति सुन्दर होती हैं। भगवान् जाने भाभी कैसी है?’’

इस पर इन्द्रनारायण की माँ ने कह दिया, ‘‘रजनी! मैंने यह मुख देखा है। चाँद के समान सुन्दर व उज्जवल है।’’

‘‘परन्तु माताजी! चाँद को तो कभी लज्जा लगती नहीं। वह तो निःशंक नियत तिथि को अपनी छटा सब राजा-रंक को दिखाता रहता है।’’

इस पर राधा ने कह दिया, ‘‘वर्षा-काल में वह भी बादलों में छिप जाता है।’’

‘‘तो अब वर्षा-काल है क्या?’’

‘‘हाँ।’’ उत्तर साधना ने दिया, ‘‘जब चकवी चकवा से मिलने की इच्छा करती है तो वर्षा काल होता है।’’

ओह तो माताजी, अब जल्दी विदाई लीजिए। बेचारी का वर्षा-काल व्यतीत हो रहा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book