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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इतना कह वह उठकर जाने लगा तो इन्द्र ने उसकी बाँह पकड़ ली। विष्णु ने बाँह छुड़ाने का यत्न किया और कहा, ‘‘छोड़ो, गाड़ी छूट जायेगी। मैं रात को ही लखनऊ पहुँचना चाहता हूँ।’’

इन्द्र ने झटका देकर उसको बिठा लिया और कहा, ‘‘ठहरो, पिताजी के सामने यह कह दो। इस प्रकार तुम जा नहीं सकोगे।’’

‘‘विष्णु हाथ छुड़ाने लगा, परन्तु इन्द्र ने छोड़ा नहीं। इससे रामाधार और सब लोगों का, जो वहाँ बैठे बधाई दे रहे थे, ध्यान उनकी ओर चला गया। रामाधार ने इन्द्र और विष्णु को खींचातानी करते देखा तो पूछ लिया, ‘‘क्या कर रहे हो, विष्णु?’’

‘‘जीजाजी! इन्द्र झगड़ा करता है।’’

‘‘बाबा! यह गाली दे रहा है।’’

‘‘गाली? इसको पकड़ लाओ इधर।’’ रामाधार ने यह समझा था कि उसको इन्द्र की ससुराल से भगा देने का क्रोध है और उसी के कारण गाली दे रहा है। रमाकान्त को समझ आयी कि पिता ने उसको पीटने की स्वीकृति दे दी है। वह उठा और विष्णु को, जो इस समय भाग जाने का यत्न कर रहा था, कमर से पकड़कर उसे धकेलते हुए पिता की ओर ले जाने लगा। विष्णु का विचार था कि जीजाजी सब बात सुन क्रोध से पिटाई करेंगे। इससे वह भागने का यत्न करने लगा था। रमाकान्त ने उसको सीधा करने के लिए दो घूँसे कमर में लगा दिये। घूँसे लगने से विष्णु का भागने का प्रयास शिथिल पड़ गया। रमाकान्त ने उसको अपने पिताजी के सामने ले जाकर ढेर कर दिया।

रमाधार रमाकान्त को विष्णु को पीटने से मना कर रहा था–‘‘रमा...ओ रमा...क्या कर रहे हो?’’

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