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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘निन्दा का विचार छोड़ दो। तुमने सुना तो था कि मैंने चौधरी को क्या उत्तर दिया था। मैंने कहा था, ‘‘हमको इस बात का विश्वास नहीं। इस पर भी हम जाँच करेंगे।’ ’’

‘‘कैसे जाँच करेंगे?’’

‘‘यह तुम्हारा काम नहीं, इन्द्र! यह मेरा काम है। मैं जाँच कर लूँगा। इस जाँच का कुछ भी परिणाम निकले, वह तुम्हारी बहू के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकती।’’

कुछ समय चुप रहने के पश्चात् रामाधार ने फिर कहना आरम्भ किया, ‘‘मान लो, विष्णु की बात तो ठीक सिद्ध होती है। उस अवस्था में भी वह अहल्या की भाँति प्रायश्चित्त कर सकती है।’’

इन्द्र अपने पिता को एक वकील की भाँति युक्ति करते देख दंग रह गया। एक बार पहले भी उसने अपने पिता के साथ विवाद किया था। उस समय भी उसको यही समझ आया था कि उसके पिता ने ‘लौजिक’ तर्कशास्त्र न पढ़ा होने पर भी उसको परास्त कर दिया था।

अब पुनः निरुत्तर हो उसने कह दिया, ‘‘रजनी से बात कर लो, बाबा! उसने मुझको चुनौती दे दी है।’’

‘‘क्या चुनौती दी है?’’

‘‘उसने कहा है कि शारदा मेरे कमरे में रहेगी। यदि मैं उससे सम्बन्ध नहीं रखना चाहता, तो उस कमरे में न जाऊँ।’’

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