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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘भीतर आना क्यों आवश्यक था?’’

‘‘तो कहाँ जाता?’’

‘‘जहाँ तुम्हारी बीवी गयी थी। मैं समझता हूँ कि तुम अपना पृथक् मकान ले लो। अब तुम यहाँ नहीं रह सकोगे।’’

‘‘आपका कहना ठीक है। मैं शीघ्र की मकान का प्रबन्ध कर लूँगा। परन्तु वह एक दिन में तो नहीं हो सकता। बीवी आज आ गयी है और आज तो यहाँ रह ही सकता हूँ।’’

‘‘आ गयी है? और तुम्हारी माँ?’’

‘‘वे भी आ गयी हैं। साथ में साधना भी।’’

‘‘उनको क्यों आने दिया है?’’

‘‘तो क्या करता?’’

‘‘मैंने उनको रोकने के ही लिये तो ताला लगाया था।’’

‘‘मुझको पता नहीं था। पता होता भी तो उनको आने से कभी न रोकता।’’

शिवदत्त ने व्यंग्य के भाव से कहा, ‘‘हाँ, भला अपनी माँ, पत्नी और बहन को घर में आने से कैसे रोक सकता था!’’

‘‘और आप भी कैसे रोक सकते हैं?’’

‘‘क्यों, मैं क्यों नहीं रोक सकता? यह मेरा घर है।’’

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