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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘एक नौजवान से मुहब्बत की है।’’

‘‘मैं खुदावन्द करीम की कसम खाकर कहती हूँ कि मैंने सिवाय आपके किसी से कभी मुहब्बत नहीं की।’’

‘‘मगर वह तुमसे इतना हिल-मिल कैसे गया है?’’

‘‘थोड़ी-सी पी ली थी और उसके नशे में हँसी-मजाक होने लगा था।’’

‘‘मैं कभी सोचता हूँ कि बाराबंकी जाकर तुमको ताले में बन्द कर दूँ।’’

‘‘तो एक-दो दिन में ही, एक फूल की मानिंद, मैं मुरझा जाऊँगी।’’

‘‘तो किसी नये फूल को ले आऊँगा।’’

‘‘मगर मुझको मारकर लाने से क्या फायदा होगा? ले आइये, जरा मैं भी तो देखूँ कि लखनऊ के बाग में कैसे-कैसे फूल खिलते हैं।’’

‘‘सत्य कहती हो? ले आऊँगा तो रूठ तो नहीं जाओगी?’’

‘‘रूठने की क्या जरूरत है? आप जानें और आपका फूल जाने।’’

‘‘अनवर चुप रहा। उसको अभी विश्वास नहीं था कि नादिरा के वालदैन उसे अपनी लड़की देने को तैयार हो जायेंगे अथवा नहीं। साथ ही विवाह की बात थी। वह दूसरा विवाह नहीं कर सकेगा, जब तक कि वह ऐना को तलाक नहीं दे देता। दूसरा विवाह कैसे सम्भव हो सकता है?

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