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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘ओह! मैं इन्द्रनारायण को जानती हूँ। आओ। मैं अपना काम समाप्त कर चुकी हूँ। तुम बैठो और ‘कीप दी पेशेन्ट चीयरफुल।’ (रोगी को प्रसन्न रखो)।’’

डॉक्टर गयी तो इन्द्र और रजनी बैठकर ऐना का हाल पूछने लगे। ऐना ने रजनी से पूछ लिया, ‘‘डॉक्टर कल मेरी परीक्षा कर कुछ कह रही थी। क्या कह रही थी वह?’’

‘‘कुछ नहीं। यह डॉक्टरों की बातें होती हैं। ये रोगी के संरक्षक को डरा देती हैं, जिससे वह उनके योग्य होने को मान्यता दे दें।’’

इस प्रकार रजनी ने ऑपरेशन की बात को टाल दिया। इस पर ऐना ने पूछा, ‘‘मिस्टर इन्द्र! आपकी बीवी अभी आयी है अथवा नहीं?’’

‘‘आ गयी है। वह अपने श्वशुर के घर में है।’’

‘‘रजनी ने कह दिया, ‘‘और अब दो बच्चों की माँ है।’’

‘‘गुड! फाइन!! परन्तु क्या वे बच्चे भी उतने ही सुन्दर हैं, जितने आप हैं?’’

‘‘आपका मतलब बदसूरती से है न? जहाँ तक मुझको स्मरण है, आप मुझको श्रेणी का सबसे ‘अगली’ लड़का मानती थीं।’’

‘‘ओह! किसी ने आपको गलत कहा है। मैं तो सदा आपको एक सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट युवक मानती रही हूँ।’’

‘‘विष्णु से भी अधिक?’’

‘‘वह एक बहुत शरारती लड़का है।’’

‘‘उसका देहान्त हो गया है।’’

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