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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


नीला उठकर जाने लगी। उसने उठते हुए कहा, ‘‘महेश्वरी के आ जाने से हम अब निश्चिन्त हो गए हैं। महेश्वरी! रात को तुम्हें ले जाने के लिए मैं मोटर भेजूंगी।’’

इलियट ने उसको रोकते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे साथ भोजन करने वाली है।’’

‘‘ठीक है, तुम भी साथ ही चली आना। तुम भी हमारे साथ भोजन कर लेना।’

‘‘मैं इसके लिए अभी आपको धन्यवाद दे देती हूं।’’

नीला गई तो इलियट ने महेश्वरी को बताया, ‘‘मैं दूसरों के साथ बैठकर भोजन करने में ही जीवन का रस लेती रहती हूं।’’

मदन बोला, ‘‘तुम कोई अपना पक्का साथी क्यों नहीं बना लेतीं?’’

‘‘पक्के साथी को पति भी बनाना पड़ जायेगा। मैं अभी किसी को पति का अधिकार देना नहीं चाहती।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यह मेरा रहस्य है जो मैं किसी को बताना नहीं चाहती।’’

मदन हंस कर चुप हो गया। इलियट ने पूछा, ‘‘महेश्वरी! चाय पी ली अथवा नहीं?’’

‘‘नहीं, मैं चाय पीने के लिए जाने वाली थी कि मिसेज साहनी आ गईं। उनसे अभी छुट्टी नहीं मिल पाई थी कि आप आ गईं।’

‘‘तो चलो चले।’

‘‘मदन जी! मैं जाऊं? आपकी चाय तो नर्सिंग होम वाले लायेंगे।’’

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