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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘मेरी कथा सुनने के उपरान्त यह रहस्य तुम जान जाओगी। पहले तुमको मैं तुम्हारी ही बात बताती हूं। मेरा मन तो कह रहा है कि तुम या तो मदन की पत्नी हो अथवा पत्नी बनने वाली हो। तुम्हारी आंखों से उसके प्रति प्रेम फूट-फूट कर टपक रहा है बताओ यह गलत है?’’

महेश्वरी मुस्कुराती हुई उसकी ओर देखती रही। इलियट ने पुनः कहा, ‘‘अच्छा और सुनो। मदन ने लैसली से विवाह कर तुमको भुला दिया प्रतीत होता है। अपने पत्रों का उससे उत्तर न पाकर तुम उसको देखने के लिए यहां चली आई हो। यहां आकर तुम चोरी-चोरी उसके मन की अवस्था जानना चाहती थीं। कदाचित तुम स्वयं को मदन के सम्मुख प्रकट भी न करतीं, यदि उसके साथ यह दुर्घटना न हो गई होती।

‘‘अब बताओ, क्या मैं गलत कह रही हूं?’’

महेश्वरी अभी भी चुप थी। इलियट ने अपने लिए बने हुए चाय के प्याले को उठा एक सुरकी लेते हुए कहा, ‘‘यह जान कि मदन ने विवाह कर लिया है, तुम उसकी बहिन होने का सम्बन्ध बता दूसरों की और स्वयं अपनी भी, आंखों धूल झोंकने का यत्न कर रही हो। अस्पताल के लोग तो तुम पर विश्वास करेंगे। उनके लिए अन्य कुछ उपाय भी नहीं। परन्तु मैं तो तुम्हारी आंखों की जबानी यह सब कहानी जान गई हूं।

‘‘एक बात और जानती हूं। तुम इस पंगु पति को पुनः स्वीकार कर लोगी। मदन अब किसी अमेरिकन लड़की के योग्य रहा भी नहीं।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह अंगहीन, अपाहिज और कदाचित आर्थिक दृष्टि से दीन-हीन हो गया है। अमेरिका में नयी पीढ़ी तो सर्वथा शरीर और सांसारिक वैभव का भक्त हो गई है। यह किसी नवीन अमेरिकन लड़की का प्रेमी नहीं बन सकता। कोई पुराने विचार की लड़की मिल जाय तो बात दूसरी है।

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