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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


5

डॉक्टर साहनी ने जब नीला से, रेशमी साड़ी पहने मदन के समीप बैठी लड़की का परिचय सुना तो विस्मय से अपनी पत्नी का मुख देखता रह गया। उसने कहा, ‘‘मालूम होता है कि मेरे कहने पर भी मदन ने फकीरचन्द को पत्र नहीं लिखा। यहाँ आकर मदन के विवाह की बात सुनकर वह परेशान तो बहुत होगी?’’

‘‘कुछ विशेष चिन्तित प्रतीत नहीं होती थी। उसने अस्पताल में अपने को मदन की बहिन लिखवाया है। इस प्रकार उसने उसके पास दिन-भर बैठने की स्वीकृति ले ली है।’’

‘‘लैसली से उसकी भेंट हो गई है या नहीं?’’

‘‘हो गई है। कहती थी कि उसने लक्ष्मी को हमारे साथ एयरड्रोम की ओर आते देखा था और अब वह बहुत बदल गई है।’’

‘‘लैसली ने उससे कुछ कहा है?’’

‘‘उनमें क्या बातें हुईं हैं यह मुझे ज्ञात नहीं हैं। मैंने उसे रात के भोजन का निमन्त्रण दिया है। उसे लेने के लिए मोटर भेजनी होगी। वह अस्पताल में ही मिलेगी।’’

‘‘मैं समझता हूं कि इस विषय में लैसली ने प्रथम ही विचार कर लेना चाहिए कि उसे क्या और किसी प्रकार कहना चाहिए। तुम जरा लैसली को बुलाओ।’’

जब से मदन के साथ यह दुर्घटना हुई थी, लैसली ने स्टूडियो से छूट्टी ले रखी थी। जब मां उसको बुलाने के लिए गई तो वह अपने बिस्तर पर कम्बल ओढ़े लेटी हुई थी। नीला भीतर गई तो लैसली ने कम्बल से मुंह बाहर निकालकर पूछा, ‘‘क्या है मम्मी?’’

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