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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


शिवदास–ऐसा न कीजिए, नहीं तो देखनेवाले हँसेंगे। मैं होटल में आ जाऊँगा। वहीं हजरतगंजवाले होटल में ठहरे हैं न?

कुँवर–अवश्य आओगे न?

शिवदास–आप बुलायेंगे, और मैं न आऊँगा?

कुँवर–यहाँ कैसे बैठे हो? दूकान तो चल रही है न?

शिवदास–आज सबेरे तक तो चलती थी। आगे का हाल नहीं मालूम।

कुँवर–तुम्हारे रुपये भी बैंक में जमा थे क्या?

शिवदास–जब आऊँगा तो बताऊँगा।

कुँवर साहब मोटर में जा बैठे और ड्राइवर से बोले–होटल की ओर चलो।

ड्राइवर–हुजूर ने ह्वाइट-वे कम्पनी की दूकान पर चलने की आज्ञा दी थी।

कुँवर–अब उधर न जाऊँगा।

ड्राइवर–जेकब साहब बारिस्टर के यहाँ भी न चलूँ?

कुँवर–(झुँझलाकर) नहीं, कहीं मत चलो। मुझे सीधे होटल पहुँचाओ।

निराशा और विपत्ति के इन दृश्यों ने जगदीशसिंह के चित्त में यह प्रश्न उपस्थित कर दिया था कि ‘अब मेरा क्या कर्तव्य है।’

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