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कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


अचानक कुँवर साहब के कानों में आवाज आयी ‘राम नाम सत्य है।’ उन्होंने पीछे मुड़कर देखा। कई मनुष्य एक लाश को लिये आते थे। उन लोगों ने नदी के तीर चिता सजायी और आग लगा दी। स्त्रियाँ चीत्कार कर रो रही थीं। इस विलाप का साहब के चित्त पर कुछ प्रभाव न पड़ा। वह चित्त में लज्जित हो रहे थे कि मैं कितना पाषण-हृदय हूँ। एक दीन मनुष्य की लाश जल रही है, स्त्रियाँ रो रही हैं और मेरा हृदय तनिक भी नहीं पसीजता। पत्थर की मूर्ति की भाँति खड़ा हूँ। एकबारगी एक स्त्री ने रोते हुए कहा, ‘हाय मेरे राजा! तुम्हें विष कैसे मीठा लगा?’ यह हृदय-विदारक विलाप सुनते ही कुँवर साहब के चित्त में एक घाव लग गया। करुणा सजग हो गयी और नेत्र अश्रुपूर्ण हो गये। कदाचित् इस दुखिया ने विष-पान करके प्राण दिये है। हाय! उसे विष कैसे मीठा लगा! इसमें कितनी करुणा है, कितना दु:ख, कितना आश्चर्य! विष तो कड़वा पदार्थ है। वह क्योंकर मीठा हो गया? कटु, विष के बदले जिसने अपने मधुर प्राण दे दिये, उस पर कोई बड़ी मुसीबत पड़ी होगी। ऐसी ही दशा में विष मधुर हो सकता है। कुँवर साहब तड़प गये। कारुणिक शब्द बार-बार उनके हृदय में गूंजते थे। अब उनसे वहाँ खड़ा न रहा गया। वह उन आदमियों के पास आये और एक मनुष्य से पूछा, ‘क्या बहुत दिनों से बीमार थे?’ इस मनुष्य ने कुँवर साहब की ओर आँसू-भरे नेत्रों से देखकर कहा ‘नहीं साहब, कहाँ की बीमारी, अभी आज संध्या तक भलीभाँति बातें कर रहे थे। मालूम नहीं, सन्ध्या को क्या खा लिया कि अचानक कै होने लगी। जब तक वैद्यराज के यहाँ जायँ, तब तक आँखें उलट गयीं। नाड़ी छूट गयी। वैद्यराज ने आकर देखा, तो कहा, अब क्या हो सकता हैं? अभी कुल बाईस-तेईस वर्ष की अवस्था थी। ऐसा पट्ठा सारे लखनऊ में नहीं था।’

कुँवर–कुछ मालूम हुआ, विष क्यों खाया?

उस मनुष्य ने सन्दिग्ध-दृष्टि से देखकर कहा–महाशय! और तो कोई बात नहीं हुई। जब से यह बड़ा बैंक टूटा है तब से ये बहुत उदास रहा करते थे। कई हजार रुपये बैंक में जमा किये थे। घी, दूध, मलाई की बड़ी दूकान थी। बिरादरी में मान था। वह सारी पूँजी डूब गयी। हम लोग रोकते रहे कि बैंक में रुपया मत जमा करो; किन्तु होनहार तो यह थी। किसी की न सुनी। आज सबेरे स्त्री से गहने माँगते थे कि बंधक रखकर अहीरों को दूध के दाम दे दें। उससे बातों-बातों में झगड़ा हो गया। बस न जाने कब क्या खा लिया।

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