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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

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परन्तु डाइरेक्टरों ने हिसाब-किताब, आय-व्यय देखना आवश्यक समझा और यह काम लाला साईंदास के सुपुर्द हुआ; क्योंकि और किसी को अपने काम से फुर्सत न थी कि एक पूरे दफ्तर का मुआयना करता। साईंदास ने नियम-पालन किया। तीन-चार दिन तक हिसाब जाँचते रहे। तब अपने इतमीनान के अनुकूल रिपोर्ट लिखी। मामला तय हो गया। दस्तावेज लिखा गया, रुपाया दे दिया गया, ९ रुपया सैकड़ा ब्याज ठहरा।

तीन साल तक बैंक के कारोबार की अच्छी उन्नति हुई। छठे महीने बिना कहे-सुने पैंतालिस हजार की थैली दफ्तर में आ जाती थी। व्यवहारियों को पाँच रुपये सैकड़े ब्याज दे दिया जाता था। हिस्सेदारों को ७ रुपये सैकड़ा लाभ था।

साईंदास से सब लोग प्रसन्न थे। सब लोग उनकी सूझ-बूझ की प्रशंसा करते थे, यहाँ तक कि बंगाली बाबू भी धीरे-धीरे उनके कायल होते जाते थे। साईंदास उनसे कहा करते, बाबू जी, विश्वास का संसार से न कभी लुप्त हुआ है। और न होगा। सत्य पर विश्वास रखना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है। जिस मनुष्य के चित्त से विश्वास जाता रहता है, उसे मृतक समझना चाहिए। उसे जान पड़ता है मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। बड़े-से-बड़ा सिद्ध महात्मा भी उसे रंगा हुआ सियार जान पड़ता है। सच्चे-से-सच्चा देश-प्रेमी उसकी दृष्टि में अपनी प्रशंसा का भूखा ही ठहरता है। संसार उसे धोखे और छल से परिपूर्ण दिखाई देता है, यहाँ तक कि उसके मन में परमात्मा पर श्रद्धा और भक्ति लुप्त हो जाती है। एक प्रसिद्ध फिलास्फर का कथन है कि प्रत्येक मनुष्य को जब तक कि उसके विरुद्ध कोई प्रत्यक्ष प्रमाण न पाओ, भलामानस समझो। वर्तमान शासन-प्रथा इसी महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त पर गठित है। और घृणा तो किसी से करनी ही न चाहिए। हमारी आत्माएँ पवित्र हैं, उनसे घृणा करना परमात्मा से घृणा करने के समान है। यह मैं नहीं कहता कि संसार में कपट-छल है ही नहीं; है और बहुत अधिकता से है परन्तु उसका निवारण अविश्वास से नहीं, मानव-चरित्र के ज्ञान से होता है, और यह एक ईश्वरदत्त गुण है। मैं यह दावा तो नहीं करता, परन्तु मुझे विश्वास है कि मैं मनुष्य को देखकर उसके मनोभावों तक पहुँच जाता हूँ। कोई कितना ही वेश बदले, रंग-रूप सँवारे, परन्तु मेरी अंत:र्दृष्टि को धोखा नहीं दे सकता। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और अविश्वास से अविश्वास। यह प्राकृतिक नियम है। जिस मनुष्य को आप आरम्भ से ही धूर्त, कपटी, दुर्जन, समझ लेंगे, वह कभी आपसे निष्कपट व्यवहार न करेगा। वह हठात् आपको नीचा दिखाने का यत्न करेगा। इसके विपरीत आप एक चोर पर भी भरोसा करें तो वह आपका दास हो जायगा। सारे संसार को लूटे, परन्तु आपको धोखा न देगा वह कितना ही कुकर्मी, अधर्मी क्यों न हो, पर आप उसके गले में विश्वास की जंजीर डालकर उसे जिस ओर चाहें ले जा सकते हैं। यहाँ तक कि वह आपके हाथों पुण्यात्मा बन सकता है।

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