कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
अहिल्या ने फिर जगिया का हाल कहा। डाक्टर के मुख पर हल्की-सी मुस्कराहट दौड़ गयी। बोले–चोर पकड़ा गया! मूठ ने अपना काम किया।
अहिल्या–और जो घर के किसी आदमी ने लिए होते?
डाक्टर–तो उसकी भी यही दशा होती, सदा के लिए सीख जाता।
अहिल्या–पाँच सौ रुपये के पीछे प्राण ले लेते?
डाक्टर–पाँच सौ रुपये के लिए नहीं, आवश्यकता पड़े तो पाँच हजार खर्च भी कर सकता हूँ, केवल छल-कपट के दंड देने के लिए।
अहिल्या–बड़े निर्दयी हो।
डाक्टर–तुम्हें सिर से पैर तक सोने से लाद दूँ तो मुझे भलाई का पुतला समझने लगो, क्यों? खेद है कि मैं तुमसे यह सनद नहीं ले सकता।
यह कहते हुए वह जगिया की कोठरी में गये। उसकी हालत उससे कहीं अधिक खराब थी जो अहिल्या ने बतायी थी। मुख पर मुर्दानी छायी थी, हाथ-पैर अकड़ गये थे, नाड़ी का पता न था। उसकी माँ उसे होश में लाने के लिए बार-बार उसके मुँह पर पानी के छींटे दे रही थी। डाक्टर ने यह हालत देखी तो होश उड़ गये। उन्हें अपने उपाय की सफलता पर प्रसन्न होना चाहिए था। जगिया ने रुपये चुराये इसके लिए अब अधिक प्रमाण की आवश्यकता न थी; परंतु मूठ इतनी जल्दी प्रभाव डालने वाली और घातक वस्तु है, इसका उन्हें अनुमान भी न था। वे चोर को एड़ियाँ रगड़ते, पीड़ा से कराहते और तड़पते देखना चाहते थे। बदला लेने की इच्छा आशातीत सफल हो रही थी; परंतु वहाँ नमक की अधिकता थी, जो कौर को मुँह के भीतर धँसने नहीं देती। यह दुःखमय दृश्य देख कर प्रसन्न होने के बदले उनके हृदय पर चोट लगी। रोब में हम निर्दयता और कठोरता का भ्रममूलक अनुमान कर लिया करते हैं। प्रत्यक्ष घटना विचार से कहीं अधिक प्रभावशालिनी होती है। रणस्थल का विचार कितना कवित्वमय है। युद्धावेश का काव्य कितनी गर्मी उत्पन्न करने वाला है। परंतु कुचले हुए शव के कटे हुए अंग-प्रत्यंग देख कर कौन मनुष्य है, जिसे रोमांच न हो आवे। दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।
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