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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


सेठजी–हुजूर ने बहुत ही सुंदर नाटक लिखा है। क्या बात है!

ड्रामेटिस्ट–यहाँ जनता अच्छे ड्रामों की कद्र नहीं करती, नहीं तो यह ड्रामा लाजवाब होता।

सेठजी–जनता कद्र नहीं करती न करे, हमें तो जनता की बिल्कुल परवाह नहीं है रत्ती बराबर परवाह नहीं है। मैं तो इसकी तैयारी में ५० हजार केवल बाबू साहब की खातिर से खर्च कर दूँगा। आपने इतनी मेहनत से एक चीज लिखी है तो मैं उसका प्रचार भी उतने ही हौसले से करूँगा। हमारे साहित्य के लिए क्या यह कम सौभाग्य की बात है कि आप जैसे महान् पुरुष इस क्षेत्र में आ गए। यह कीर्ति हुजूर को अमर बना देगी।

ड्रामेटिस्ट–मैंने तो ऐसा ड्रामा आज तक नहीं देखा। लिखता मैं भी हूँ, और लोग भी लिखते हैं। लेकिन आपकी उड़ान को कोई क्या पहुँचेगा! कहीं-कहीं तो आपने शेक्सपियर को भी मात कर दिया है।

सेठजी–तो जनाब, जो चीज दिल की उमंग से लिखी जाती है, वह ऐसी ही अद्वितीय होती है। शेक्सपियर ने जो कुछ लिखा, रुपये के लोभ से लिखा। हमारे दूसरे नाटककार भी धन ही के लिए लिखते हैं। उनमें यह बात कहाँ पैदा हो सकती है, जो निःस्वार्थ भाव से लिखने वालों में पैदा हो सकती है। गोसाईंजी की रामायण क्यों अमर है? इसीलिए कि वह भक्ति और प्रेम से प्रेरित होकर लिखी गई है। सादी कि गुलिस्ताँ और बोस्ताँ, होमर की रचनाएँ इसी लिए स्थायी हैं कि उन कवियों ने दिल की उमंग से लिखा। जो उमंग से लिखता है, वह एक-एक शब्द, एक-एक वाक्य एक-एक उक्ति पर महीनों खर्च कर देता है। धनेच्छु को तो एक काम जल्दी से समाप्त करके दूसरा काम शुरू करने की फिक्र होती है।

ड्रामेटिस्ट–आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं। हमारे साहित्य की अवनति केवल इसलिए हो रही है कि हम सब धन के लिए या नाम के लिए लिखते हैं।

सेठजी–सोचिए, आपने दस साल केवल संगीत-कला के लिए खर्च कर दिए। लाखों रुपये कलावंतों और गायकों को दे डाले होंगे। कहाँ-कहाँ से और कितने परिश्रम और खोज से इस नाटक की सामग्री एकत्र की। न जाने कितने राजा-महाराजाओं को सुनाया। इस परिश्रम और लगन का पुरस्कार कौन दे सकता है!

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