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प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


ड्रामेटिस्ट–मुमकिन ही नहीं। ऐसी रचनाओं के पुरस्कार की कल्पना करना ही उसका अनादर करना है। उसका पुरस्कार यदि कुछ है, तो अपनी आत्मा का संतोष है, वह संतोष आपके एक-एक शब्द से प्रकट होता है।

सेठजी–आपने बिल्कुल सत्य कहा–ऐसी रचनाओं का पुरस्कार अपनी आत्मा का संतोष है। यश तो बहुधा ऐसी रचनाओं को मिल जाता है जो साहित्य के लिए कलंक हैं आपसे ड्रामा ले लीजिए और आज ही पार्ट भी तकसीम कर दीजिए तीन महीने के अन्दर इसे खेल डालना होगा।

मेज पर ड्रामे की हस्तलिपी पड़ी हुई थी। ड्रामेटिस्ट ने उसे उठा लिया। गुरुप्रसाद ने दीननेत्रों से विनोद की ओर देखा। विनोद ने अमर की ओर, अमर ने रसिक की ओर, शब्द किसी के मुँह से न निकला सेठजी ने मानों सभी के मुँह सी दिये हों। ड्रामेटिस्ट साहब किताब लेकर चल दिए।

सेठजी–थोड़ी-सी तकलीफ और करनी होगी। ड्रामा का रिहर्सल तो शुरू हो जाएगा, तो आपको थोड़े दिनों कम्पनी के साथ रहने का कष्ट उठाना पड़ेगा। हमारे एक्टर अधिकांश गुजराती हैं। वे हिन्दी भाषा के शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर सकते। कहीं-कहीं पर शब्दों पर अनावश्यक जोर देते हैं। आप की निगरानी से ये सारी बुराईयाँ दूर हो जाएँगी। एक्टरों ने यदि पार्ट अच्छा न किया, तो आपके सारे परिश्रम पर पानी पड़ जाएगा यह कहते हुए उसने लड़के को आवाज दी–बॉय! आप लोगों के लिए सिगार लाओ।

सिगार आ गया। सेठजी उठ खड़े हुए। यह मित्र-मंडली के लिए विदाई की सूचना थी। पाँचों सज्जन भी उठे सेठजी आगे-आगे द्वार तक आये। फिर सब से हाथ मिलाते हुए कहा–आज इस गरीब कम्पनी का तमाशा देख लीजिए फिर यह संयोग न जाने कब प्राप्त हो।

गुरुप्रसाद ने मानो किसी कब्र के नीचे से कहा–हो सका, तो आ जाऊँगा।

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