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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


सड़क पर आकर पाँचों मित्र खड़े होकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। तब पाँचों ही जोर से कहकहा मारकर हँस पड़े।

विनोद ने कहा–यह हम सबका गुरुघंटाल निकला।

अमर-साफ आँखों में धूल झोंक दी।

रसिक–मैं उसकी चुप्पी देखकर पहले ही से डर रहा था कि यह कोई पल्ले सिरे का घाघ है।

मस्त–मान गया इसकी खोपड़ी को। यह चपत उम्र भर न भूलेगी।

गुरुप्रसाद इस आलोचना में शरीक न हुए। वह इस तरह सिर झुकाए चले जा रहे थे, मानो अभी तक वह स्थिति को समझ ही न पाए हों!

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मंत्र

पंडित लीलाधर चौबे की जबान में जादू था। जिस वक्त वह मंच पर खड़े होकर अपनी वाणी की सुधावृष्टि करने लगते थे, श्रोताओं की आत्माएँ तृप्त हो जाती थीं, लोगों पर अनुराग का नशा छा जाता था। चौबे जी के व्याख्यानों में तत्त्व तो बहुत कम होता था, शब्दयोजना भी बहुत सुन्दर न होती थी; लेकिन उनकी शैली इतनी आकर्षक, रंजक और मर्मस्पर्शी थी कि एक ही व्याख्यान को बार-बार दुहराने पर भी उसका असर कम न होता, बल्कि घन की चोटों की भाँति और भी प्रभावोत्पादक होता जाता था। विश्वास तो नहीं आता किन्तु सुनने वाले कहते हैं, उन्होंने केवल एक व्याख्यान रट रखा है, और उसी को वह शब्दशः प्रत्येक सभा में एक नए अंदाज से दुहराया करते हैं। जातीय गौरव-गान उनके व्याख्यानों का प्रधान गुण था; मंच पर आते ही भारत के प्राचीन गौरव और पूर्वजों की अमर-कीर्ति का राग छोड़कर सभा को मुग्ध कर देते थे। यथा–

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