लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

93 पाठक हैं

इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


मैं तल्लीन होकर इस स्वर्गीय आनन्द का उपभोग कर रहा था कि सहसा मेरी दृष्टि एक सिंह पर जा पड़ी, जो मन्द गति से कदम बढ़ाता हुआ मेरी ओर आ रहा था। उसे देखते ही मेरा खून सूख गया, होश उड़ गए। ऐसा बृहदाकार भयंकर जन्तु मेरी नजर से न गुजरा था। वहाँ ज्ञानसरोवर के अतिरिक्त कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहाँ भागकर अपनी जान बचाता। मैं तैरने में कुशल हूँ, पर ऐसा भयभीत हो गया कि अपने स्थान से हिल न सका। मेरे अंग-प्रत्यंग मेरे काबू से बाहर थे समझ गया, मेरी जिन्दगी यहीं तक थी इस शेर के पंजे से बचने की कोई आशा न थी। अकस्मात मुझे स्मरण हुआ कि जेब में एक पिस्तौल गोलियों से भरी हुई रखी है, जो मैंने आत्मरक्षा के लिए चलते समय साथ ले ली थी, और अब तक प्राण-पण से इसकी रक्षा करता आया था। आश्चर्य है कि इतनी देर तक मेरी स्मृति कहाँ सोयी रही! मैंने तुरन्त ही पिस्तौल निकाली, और निकट था कि शेर पर वार करूँ कि मेरे कानों में ये शब्द सुनाई दिए–

मुसाफिर, ईश्वर के लिए वार न करना, अन्यथा तुझे दुःख होगा। सिंहराज से तुझे हानि न पहुँचेगी।

मैंने चकित होकर पीछे की ओर देखा, तो एक युवती रमणी आती हुई दिखाई दी। उसके एक हाथ में सोने का लोटा था और दूसरे में एक थाली। मैंने जर्मनी की हूरे और कोहकाफ की परियाँ देखी हैं, पर हिमांचल-पर्वत की यह अप्सरा मैंने एक ही बार देखी, और उसका चित्र आज तक हृदय-पट पर खिंचा हुआ है। मुझे स्मरण नहीं कि ‘रफेल’ या ‘क्रोरेजियो’ ने भी कभी ऐसा चित्र खींचा हो। ‘वैंडाइक’ और ‘रेमब्रांड’ के आकृति-चित्रों में भी ऐसी मनोहर छवि नहीं देखी। पिस्तौल मेरे हाथ से गिर पड़ी। कोई दूसरी शक्ति इस समय मुझे अपनी भयावह परिस्थिति से निश्चिंत न कर सकती थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book