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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


मैं उस सुन्दरी की ओर देख ही रहा था कि वह सिंह के पास आयी। सिंह उसे देखते ही खड़ा हो गया, और मेरी ओर सशंक नेत्रों से देखकर मेघ की भाँति गरजा। रमणी ने एक रूमाल निकालकर उसका मुँह पोंछा, और फिर लोटे से दूध उँडेलकर उसके सामने रख दिया। सिंह दूध पीने लगा। मेरे विस्मय की अब कोई सीमा न थी। चकित था की यह कोई तिलिस्म है या जादू; व्यवहार लोक में हूँ अथवा विचार-लोक में; सोता हूँ या जागता। मैंने बहुधा सरकसों में पालतू शेर देखे हैं, किन्तु उन्हें काबू में रखने के लिए किन-किन रक्षा-विधानों से काम लिया जाता है! उसके प्रतिकूल यह माँसाहारी पशु उस रमणी के सम्मुख इस भाँति लेटा हुआ है, मानो वह सिंह की योनि में कोई मृग शावक है। मन में प्रश्न हुआ–सुन्दरी में कौन सी चमत्कारिक शक्ति है, जिसने सिंह को इस प्रकार वशीभूत कर लिया है। क्या पशु भी अपने हृदय में कोमल और रसिक-भाव छिपाए रखते हैं? कहते हैं कि महुअर की अलाप काले नाग को भी मस्त कर देती है। जब ध्वनि में यह सिद्धि है, तो सौन्दर्य की शक्ति का अनुमान कौन कर सकता है? रूप लालित्य संसार को सबसे अमूल्य रत्न, प्रकृति के रचना नैपुण्य का सर्वश्रेष्ठ आदर्श है।

जब सिंह दूध पी चुका, तो सुन्दरी ने रूमाल से फिर उसका मुँह पोंछा और उसका सिर अपनी जाँघ पर रख, उसे थपकियाँ देने लगी। सिंह पूँछ हिलाता था, और सुन्दरी की अरुण वर्ण हथेलियों को चाटता था। थोड़ी देर के बाद दोनों एक गुफा में अंतर्हित हो गए। मुझे भी धुन सवार हुई कि किसी प्रकार इस तिलिस्म को खोलूँ, इस रहस्य का उद्घाटन करूँ। जब दोनों अदृश्य हो गए, तो मैं भी उठा, और दबे-पाँव उस गुफा के द्वार तक जा पहुँचा।

भय से मेरे शरीर की बोटी-बोटी काँप रही थी, मगर इस रहस्य-पट को खोलने की उत्सुकता भय को दबाए हुए थी। मैंने गुफा के भीतर झाँका तो क्या देखता हूँ कि पृथ्वी पर जरी का फर्श बिछा हुआ है, और कारचोबी गाव-तकिये लगे हैं। सिंह मसनद पर गर्व से बैठा हुआ है। सोने चाँदी के पात्र, सुन्दर चित्र, फूलों के गमले, सभी अपने-अपने स्थान पर सजे हुए है, और वह गुफा राजभवन को भी लज्जित कर रही है।

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