सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
ज्ञानशंकर– सुना करता था कि मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण भी उसमें आ जाते हैं, पर विश्वास न आता था। अब विदित हो रहा है कि यह कथन सर्वथा निस्सार नहीं है। मुझे दो बार से अनुभव हो रहा है जब अपना पार्ट खेलने लगता हूँ तब किसी दूसरे ही जगत् में पहुँच जाता हूँ। चित्त पर एक विचित्र आनन्द छा जाता है, ऐसा भ्रम होने लगता है कि मैं वास्तव में कृष्ण हूँ।
गायत्री– मैं भी यह कहनेवाली थी। मैं तो अपने को बिलकुल भूल ही जाती हूँ।
ज्ञान– सम्भव है उस आत्म-विस्मृति की दशा में मुझसे कोई अपराध हो गया हो तो उसे क्षमा कीजिएगा।
गायत्री सकुचाती हुई बोली– प्रेमोद्गार में अन्तःकरण निर्मल हो जाता है, वासनाओं का लेश भी नहीं रहता।
ज्ञानशंकर एक मिनट तक खड़े इन शब्दों के आशय पर विचार करते रहे और तब बाहर चले गये।
दूसरे दिन विद्यावती बनारस पहुँची। उसने अपने आने की सूचना न दी थी, केवल एक भरोसे के नौकर को साथ लेकर चली आयी थी ज्यों ही द्वार पर पहुँची उसे बृहत् पंडाल दिखायी दिया। अन्दर गयी तो श्रद्धा दौड़ कर उससे गले मिली। महरियाँ दौड़ी आयीं। वह सब-की-सब विद्या को करुणा-सूचक नेत्रों से देख रही थी। गायत्री गंगा स्नान करने गयीं थी। विद्या के कमरे में गायत्री का राज्य था। उसके सन्दूक और अन्य सामान चारों ओर भरे हुए थे। विद्या को ऐसा क्रोध आया कि गायत्री का सब सामान उठाकर बाहर फेंक दे, पर कुछ सोचकर रह गयी। गायत्री के साथ कई महरियाँ भी आयी थीं। वे वहाँ की महरियों पर रोब जमाती थीं। विद्या को देखकर सब इधर-उधर हट गयीं, कोई कुशल समाचार पूछने पर भी न आयी। विद्या इन परिस्थितियों को उसी दृष्टि से देख रही थी जैसे कोई पुलिस अफसर किसी घटना के प्रमाणों को देखता है! उसके मन में जो शंका आरोपित हुई थी उसकी पग-पग पर पुष्टि होती जाती थी। ज्यों ही एकान्त हुआ, विद्या ने श्रद्धा से पूछा– यह शामियाना कैसे तना हुआ है?
श्रद्धा– रात को वहाँ कृष्णलीला हुई थी।
विद्या– बहिन ने भी कोई पार्ट लिया?
श्रद्धा– वह राधिका बनी थी और बाबू जी ने कृष्ण का पार्ट लिया था।
विद्या– बहिन से खेलते तो न बना होगा?
श्रद्धा– वाह! वह इस कला में निपुण हैं। सारी सभा लट्टू हो गयी। आती होंगी, आप ही कहेंगी।
विद्या– क्या नित्य गंगा स्नान करने जाती हैं?
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