सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
बलराज– यह सब आपका अकबाल है। यहाँ पहले कोई अखबार का नाम भी न जानता था। अब कई अच्छे-अच्छे पत्र भी आते हैं। सवेरे आपको अपना वाचनालय दिखलाऊँगा। गाँव के लोग यथायोग्य १ रुपए, २ रुपए मासिक चंदा देते हैं, नहीं तो पहले हम लोग मिल कर पत्र माँगते थे तो सारा गाँव बिदकता था। जब कोई अफसर दौरे पर आता, कारिन्दा साहब चट उससे मेरी शिकायत करते। अब आपकी दया से गाँव में रामराज है। आपको किसी दूसरे गाँव में पूसा और मूजफ्फरपुर का गेहूँ न दिखायी देगा। हम लोगों ने अबकी मिल कर दोनों कोनों से बीज मँगवाये और डेवढ़ी पैदावार होने की पूरी आशा है। पहले यहाँ डर के मारे कोई कपास बोता ही न था। मैंने अबकी मालवा और नागपुर से बीज मँगवाये और गाँव में बाँट दिये। खूब कपास हुई। यह सब काम गरीब असामियों के मान के नहीं हैं जिनको पेट भर भोजन नहीं मिलता, सारी पैदावार लगान और महाजन के भेंट हो जाती है।
यह बातें करते-करते भोजन का समय आ पहुँचा। लोग भोजन करने गये। मायाशंकर ने भी पूरियाँ दूध में मलकर खायीं, दूध पिया और फिर लेटे। थोड़ी देर में लोग खा-पीकर आ गये। गाने-बजाने की ठहरी। कल्लू ने गाया। कादिर खाँ ने दो-तीन पद सुनाये। रामायण का पाठ हुआ। सुखदास ने कबीर-पन्थी भजन सुनाये। कल्लू ने एक नकल की। दो-तीन घण्टे खूब चहल-पहल रही। माया को बड़ा आनन्द आया। उसने भी कई अच्छी चीजें सुनायीं। लोग उनके स्वर माधुर्य पर मुग्ध हो गये।
सहसा बलराज ने कहा– बाबूजी, आपने सुना नहीं? मियाँ फैजुल्ला पर जो मुकदमा चल रहा था, उसका आज फैसला सुना दिया गया। अपनी पड़ोसिन बुढ़िया के घर में घुस कर चोरी की थी। तीन साल की सजा हो गयी।
डपटसिंह ने कहा– बहुत अच्छा। सौ बेंत पड़ जाते तो और भी अच्छा होता। यह हम लोगों की आह पड़ी है।
माया– बिन्दा महाराज और कर्तार सिंह का भी कहीं पता है?
बलराज– जी हाँ, बिन्दा महाराज, तो यहीं रहते हैं। उनके निर्वाह के लिए हम लोगों ने उन्हें यहाँ का बय बना दिया है। कर्तार पुलिस में भरती हो गये।
दस बजते-बजते लोग विदा हुए। मायाशंकर ऐसे प्रसन्न थे, मानो स्वर्ग में बैठे हुए हैं।
स्वार्थ-सेवी, माया के फन्दों में फँसे हुए मनुष्यों को यह शान्ति, यह सुख, यह आनन्द, यह आत्मोल्लास कहाँ नसीब?
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