लोगों की राय

नई पुस्तकें >> रंगभूमि (उपन्यास)

रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

138 पाठक हैं

नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


जगधर–अच्छा भाई, तुम जीते, मैं हारा। तुम सच्चे, तुम्हारा दूध सच्चा। बस, हम खराब, हमारी मिठाइयां खराब। चलो छुट्टी हुई।

बजरंगी–मेरे मिजाज को तुम नहीं जानते, चेता देता हूं। सच कहकर कोई सौ जूते मार लें, लेकिन झूठी बात सुनकर मेरे बदन में आग लग जाती है।

भैरों–बजरंगी, बहुत बढ़कर बातें न करो, अपने मुंह मियां-मिट्ठू बनने से कुछ नहीं होता है। बस, मुंह न खुलवाओ, मैंने भी तुम्हारे यहां का दूध पिया है। उससे तो मेरी ताड़ी ही अच्छी है।

ठाकुरदीन–भाई, मुंह से जो चाहे ईमानदार बन ले; पर अब दूध सपना हो गया। सारा दूध जल जाता है, मलाई का नाम नहीं। दूध जब मिलता था, तब मिलता था, एक आंच में अंगुल-भर मोटी मलाई पड़ जाती थी।

दयागिरि–बच्चा, अभी अच्छा-बुरा कुछ मिल तो जाता है। वे दिन आ रहे हैं कि दूध आंखों में आंजने को भी न मिलेगा।

भैरों–हाल तो यह है कि घरवाली सेर के तीन सेर बनाती है, उस पर दावा यह कि हम सच्चा माल बेचते हैं। सच्चा माल बेचो, तो दिवाला निकल जाए। यह ठाट एक दिन न चले।

बजरंगी–पसीने की कमाई खानेवालों का दिवाला नहीं निकलता; दिवाला उनका निकलता है, जो दूसरों की कमाई खा-खाकर मोटे पड़ते हैं। भाग को सराहो कि शहर में हो; किसी गांव में होते, तो मुंह में मक्खियां आतीं-जातीं। मैं तो उन सबों को पापी समझता हूं, जो औने-पौने करके, इधर का सौदा उधर बेचकर अपना पेट पालते हैं। सच्ची कमाई उन्हीं की है, जो छाती फाड़कर धरती से धन निकालते हैं।

बजरंगी ने बात तो कही, लेकिन लज्जित हुआ। इस लपेट में वहां के सभी आदमी आ जाते थे। वह भैरों, जगधर और ठाकुरदीन को लक्ष्य करना चाहता था, पर सूरदास, नायकराम, दायागिरि, सभी पापियों की श्रेणी में आ गए।

नायकराम–तब तो भैया, तुम हमें भी ले बीते। एक पापी तो मैं ही हूं कि सारे दिन मटरगस्ती करता हूं और वह भोजन करता हूँ कि बड़ों-बड़ों को मयस्सर न हो ।

ठाकुरदीन–दूसरा पापी मैं हूं कि शौक की चीज बेचकर रोटियां कमाता हूं। संसार में तमोली न रहें, तो किसका नुकसान होगा?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book