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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


जगधर–तीसरा पापी मैं हूं कि दिन-भर औन-पौन करता रहता हूं। सेव और खुम खाने को न मिलें, तो कोई मर न जाएगा।

भैरों–तुमसे बड़ा पापी मैं हूं कि सबको नसा खिलाकर अपना पेट पालता हूं। सच पूछो, तो इससे बुरा कोई काम नहीं। आठों पहर नशेबाजों का साथ, उन्हीं की बातें सुनना, उन्हीं के बीच रहना। यह भी कोई जिंदगी है !

दयागिरि–क्यों बजरंगी, साधु-संत तो सबसे बड़े पापी होंगे कि वे कुछ नहीं करते?

बजरंगी–नहीं बाबा, भगवान के भजन से बढ़कर और कौन उद्यम होगा? राम-नाम की खेती सब कामों से बढ़कर है।

नायकराम–तो यहां अकेले बजरंगी पुण्यात्मा हैं, और सब-के-सब पापी हैं?

बजरंगी–सच पूछो, तो सबसे बड़ा पापी मैं हूं कि गउओं का पेट काटकर, उनके बछड़ों को भूखा मारकर अपना पेट पालता हूं।

सूरदास–भाई, खेती सबसे उत्तम है, बान उससे मद्धिम है; बस, इतना ही फरक है। बान को पाप क्यों कहते हैं, और क्यों पापी बनते हो? हां सेवा निरघिन है, और चाहो तो उसे पाप कहो। अब तक तो तुम्हारे ऊपर भगवान की दया है, अपना-अपना काम करते हो; मगर ऐसे बुरे दिन आ रहे हैं, जब तुम्हें सेवा और टहल करके पेट पालना पड़ेगा, जब तुम अपने नौकर नहीं, पराए के नौकर हो जाओगे, तब तुममें नीतिधरम का निशान भी न रहेगा।

सूरदास ने ये बातें बड़े गभीर भाव से कहीं, जैसे कोई ऋषि भविष्यवाणी कर रहा हो। सब सन्नाटे में आ गए। ठाकुरदीन ने चिंतित होकर पूछा–क्यों सूरे, कोई विपत आने वाली है क्या? मुझे तो तुम्हारी बातें सुनकर डर लग रहा है। कोई नई मुसीबत तो नहीं आ रही है?

सूरदास–हां, लच्छन तो दिखाई देते हैं, चमड़े के गोदामवाला साहब यहां एक तमाकू का कारखाना खोलने जा रहा है। मेरी जमीन मांग रहा है। कारखाने का खुलना ही हमारे ऊपर विपत का आना है।

ठाकुरदीन–तो जब जानते ही हो, तो क्यों अपनी जमीन देते हो?

सूरदास–मेरे देने पर थोड़े ही है भाई। मैं दूं तो भी जमीन निकल जाएगी, न दूं, तो निकल जाएगी। रुपएवाले सब कुछ कर सकते हैं।

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