नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
आसा जी के हमराही कहते थे कि देखें आसा जी कैसे इस धूम-धड़ाके से चलती हुई राजसी सवारी को रोक देंगे जिसके आगे कोई चूं नहीं कर सकता। इतने में रूठी रानी का सुखपाल आसा जी के बराबर आ पहुंचा। उसने बड़े अदब से चोबदार को आवाज देकर कहा– ‘‘बाई जी से अर्ज करो कि आसा चारण मुजरा करता है और कुछ अर्ज भी करना चाहता है।’’ उसके साथ ही यह दोहा पढ़ा-
दोमी हाथी बंधिए एकड़ खतमों ठान
यानी, अगर मान रखना चाहती हैं तो पति को तज दें और पति को रखना चाहती हैं तो मान को तज दें, क्योंकि एक ही थान में दो हाथी नहीं बांधे जा सकते।
यह दोहा सुनते ही रूठी रानी का जोश फिर ताजा हो गया और दिल काबू में न रहा। फौरन हुक्म दिया कि अभी सवारी लौटे, जो एक कदम भी आगे रक्खे उसकी गर्दन उड़ा दी जाएगी। सब लोग हैरत में आ गए कि यह क्या हुआ। एकाएक यह कायापलट क्यों कर हुई। ईश्वरदास ने बहुत जोर मारा, हाथ जोड़े, पैरों पडा, सारी वाकशक्ति खर्च कर डाली मगर आसा जी के जादूभरे शब्दों के सामने उसकी कुछ न चली। सरदार-सिपहसालार बहुत-बहुत आरजू मिन्नत करते रहे मगर उसने किसी की न सुनी। उसी कोसाना गांव में डेरे डलवा दिए।
आसा जी को भी तक संशय था कि कहीं लोगों के कहने-सुनने से रानी का इरादा फिर न पलट जाए। लिहाजा ज्योंही डेरे पर गए वह उनकी ड्योढ़ी पर हाजिर हुआ और मुजरा करके कहा– ‘‘बाई जी, आपकी जितनी स्तुति की जाए थोड़ी है। आपने जो ठान ठानी है वह आप ही का काम है।’
रानी– ‘‘बाबा जी, वह दोहा फिर पढ़िए। बहुत अच्छा और सच्चा है। मैं अपनी टेक कभी न छोड़ूंगी।
आसा जी– (दोहा पढ़कर) ‘‘बाई जी, राजाओं में सच्चा मानी दुर्योधन हुआ। उसी कुल में आप हैं। रानियों में आपका-सा अपनी बात पर कायम रहने वाला कोई और नहीं है।
रानी– ‘‘बाबा जी, दुर्योधन नाम का तो एक ही राजा हुआ है पर अभागी उमा के नाम की तो कई रानियां हुई। उनमें एक के नाम का यह दोहा मशहूर है–
उमा पीउ न चख्यो, आड़ो लेख करम।’’
यानी, हार दिया, छिपाया, इज्जत खोई फिर भी उमा को पति का सुख न नसीब हुआ। उसकी किस्मत की लकीर आड़ी पड़ गई।
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