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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


आसा जी– ‘‘बाई जी, यह तो उमा१ सांखेली थी और तुम उमा भट्टानी हो। दोनों का घराना भी एक नहीं।’’ (1. उमादेई सांखेली गाधरों के राजा अचलदास की रानी थी। उसकी सौत सोढ़ी रानी राजा के मुंह लगी थी कि राजा उसके डर से सांखेली के पास नहीं जाता था। जब इस तरह बहुत साल गुजर गए तो एक दिन सोढ़ी रानी ने सांखेली के पास एक अनमोल हार देखकर एक रात के लिए मांगा। उसने इस शर्त पर वह हार दिया कि सोढ़ी राजा को एक रात उसके पास आने दे। सोढ़ी ने यह बात मंजूर कर ली मगर राजा को समझा दिया कि जाना, मगर चुपचाप रात काटकर चले आना। राजा ने वैसा ही किया। सवेरे सांखेली रानी ने बड़ी व्यथा के स्वर में यह दोहा पढ़ा। मगर जनमुरीद राजा को जरा भी तरस न आया। राजपूताना के लोग निराशा के लिए ये यह दोहा पढ़ा करते हैं।)

रानी– (रोकर) ‘‘बाबा जी, दोहे में सिर्फ उमा कहा है, सांखेली और भट्ठानी कौन जाने।’’

आसा जी– ‘‘क्यों न जानें? यह दोहा अचलदास का कहा हुआ है। उमा देई सांखेली उसकी रानी थी। उसे सब जानते हैं, क्या तुम नहीं जानतीं?’’

रानी– ‘‘मेरे और तुम्हारे जानने से क्या होता है? दोहे में तो कोई व्याख्या नहीं की। मेरे और तुम्हारे पीछे कौन जानेगा?’’

आसा जी– ‘‘तुम्हारे पीछे तक अगर जीता रहा तो तुम्हारे नाम को अमर बना जाऊंगा।’’

रानी– ‘‘बड़ी खैरियत हुई कि आप आ गए। अगर आप न आते तो न जाने क्या होता। आपके भतीजे के दमधागों में आकर मैं अपनी मरजाद छोड़ देती तो सौंते मुझ पर हंसती और कहतीं कि बस इतना ही पानी था।’’

इतने में चोबदार ने आकर अर्ज किया कि ईश्वरदास हाजिर है। आसा जी यह सुनते ही खटक गए। ईश्वरदास ने आकर कहा– ‘‘बाई जी, आपने यह क्या जुल्म किया, चलती सवारी राह में ही ठहरा दी। राव जी आपका रास्ता देख रहे हैं। कुमार रामसिंह रायमल, उदयसिंह और चन्द्रसेन आदि आपकी अगवानी के लिए तैयार हैं। सारे शहर में जश्न हो रहा है कि रूठी रानी तशरीफ लाती हैं और राव जी उन्हें किला सौंपकर लड़ने जाते हैं। भला यहां रुक जाने से लोग अपने दिल में क्या समझेंगे?

रानी– ‘‘इंतजाम जो हो वह मेरे सुपर्द करें और खुद शौक से लड़ने जाएं।

राजपूतों को दुश्मनों से लड़ने में ढील-ढाल न करनी चाहिए।’’

ईश्वरदास– ‘‘क्या अंधेर करती हो, यहां रहकर क्या करोगी? राव जी ने अपने-पराए सबसे दुश्मनी पैदा कर रक्खी है, सारे खानदान में फूट फैली हुई है। ब्रह्मदेव मेड़तिया और मारवाड़ के दूसरे ठाकुर और जागीरदार, जिनकी जमीन राव जी ने छीन ली है, शेरशाह के पास फरियाद करने गए हैं। एक तरफ से शेरशाह और दूसरी तरफ से हुमायूं के आने की खबरें उड़ रही हैं। ऐसी हालत में तो यही मुनासिब है कि आप जोधपुर चलकर किले की निगरानी कीजिए।’’

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