नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
रानी– ‘‘बादशाह आते हैं तो आने दो, मुझे उनका क्या डर पड़ा है। मैंने तो तुमसे जो बात अजमेर में कही थी, वही यहां भी कहती हूं। राव जी अगर कोई काम मेरे सुपर्द करेंगे तो मैं यहां बैठे-बैठे जोधपुर सम्भाल लूंगी। राव जी जहां चाहें जाएं, मैं अब जोधपुर न जाऊंगी। हां, अगर राव जी की मर्जी हो तो रावसर में जा रहूं।’’
ईश्वरदास कह-सुनकर हार गए। जब कुछ बस न चला तो जोधपुर जाकर राव जी से अर्ज की कि मैंने तो बाई जी को यहां आने पर राजी कर लिया था मगर आसा जी ने बनी बात बिगाड़ दी, सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। आपने उसे क्यों भेजा ! रानी उमादे को तो आप जानते ही हैं। आसा जी ने जाते ही मान-मरजाद का जिक्र छेड़ दिया, बस वह मचल गयीं और कोसाने में डेरा डाल दिया। मैंने बहुत आरजू-मिन्नत की मगर उन्होंने एक न सुनी। किसी ने पागल से पूछा– पांव क्यों जलाया? उसने कहा– खूब याद दिलाया, अब जलाता हूं।
राव जी– ‘‘फिर अब क्या करना चाहिए? किसे भेजूं?’’
ईश्वरदास– ‘‘मुझे तो ऐसा कोई नजर नहीं आता, जो उन्हें जाकर मनाए और वह भी आसा जी के होते।’’
राव जी– ‘‘आसा जी तो मुझसे घर जाने की छुट्टी ले गए थे?’’
ईश्वरदास– ‘‘बस इसी में कुछ चाल हुई।’’
राव जी– ‘‘चाल कैसी?’’
ईश्वरदास– ‘‘फिलहाल आसा जी को हुक्म मिलना चाहिए कि यहां से चले जाएं, फिर देखा जाएगा।’’
इतने में हुमायूं सिंध से मारवाड़ में आ गया और आगरा में शेरशाह के दूत राव जी के पास यह पैगाम लेकर पहुंचे कि हुमायूं को पकड़ना, हरगिज न जाने देना। इसके बदले में गुजरात फतेह करके तुम्हें दिया जाएगा। यह सुनकर राव जी दुविधा में पड़ गए। यह खबर हुमायूं ने भी सुनी। इधर न आया। ऊपर ही ऊपर लौट गया। उसके साथ के लोगों ने मारवाड़ में गोकुशी की थी। राव जी ने इस अपमान का बदला लेने के लिए और कुछ शेरशाह की नजरों में वफादार बनने की गरज से अपनी फौज हुमायूं के पीछे रवाना की मगर वह बचकर निकल गया।
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