नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
राजपूतों की बहादुरी
शेरशाह ने जब सुना कि हुमायूं साफ बचकर निकल गया तो उसे शक हुई कि राव जी की जरूर उससे सांठ-गांठ है। बिगड़ गया और फौरन मारवाड़ पर चढ़ दौडा़। राव जी अजमेर जाने को तो पहले से ही तैयार थे, अब मेड़ते का रास्ता छोड़कर जेतारन के रास्ते से चले। जोधपुर के फौजदार ने राव जी के हुक्म से कोसाना में जाकर रानी उमा देई के जुलूस का इंतजाम मेड़ते के हाकिम से ले लिया। मेड़ते के हाकिम और आसा जी दोनों ने रुखसत होते वक्त रानी की सरकार से खिलअत पाई। हाकिम मेड़ते को आया, आसा जी जैसलमेर सिधारे। राव जी ने नादिरशाही हुक्म दे दिया था कि तुम आज से हमारे राज में न रहना।
जब राव जी अजमेर पहुंचे तो शेरशाह ने सुना कि उनके पास अस्सी हजार सवार हैं। सुनते ही सन्नाटे में आ गया। हियाव छूट गया। आगे कदम न उठे मगर बैरम जी मेड़ते ने कहा– ‘‘आप चलें तो सही, मैं राव जी को दम से दम में भगाए देता हूं। हिन्दुओं की अनबन और फूट ने हमेशा मुल्क वीरान किए हैं और गैरों से हमेशा हारें दिलाई हैं। यह बैरम जी मेड़ते का सरदार और उस बहादुर जयमल का बाप था जिसने चित्तौड़ के घेरे में अकबर को नाकों चने चबवाए थे और जिसके नाम पर आज तक सारा राजस्थान गर्व करता है। राव जी ने उसे मेड़ते से निकाल दिया। इसी का बदला लेने के लिए वह शेरशाह से जा मिला था।
शेरशाह को बैरम के कहने का यकीन न हुआ, वह फूंक-फूंककर कदम धरता आगे को चला मगर अब अजमेर के बहुत करीब पहुंच गया तो उसने उनसे कहा कि अब आप अपनी होशियारी दिखाइए। बैरम ने कहा– बहुत खूब ! चुनांचे उसने राव मालदेवजी के सरदारों के नाम फारसी में इस मजमून के फरमान लिखे– ‘‘हम आप साहबों के लगातार तकाजों से मजबूर होकर यहां तक आ पहुंचे हैं। अब आप लोग अपने वचन के अनुसार राव जी को गिरफ्तार करके हमारे पास ले आएं। खर्च के लिए फीरोजियां१ भेजी जाती हैं। (१. फीरोजशाही सिक्कों को कहते थे जो इस जमाने में चलता था।)
इसके बाद बहुत-सी ढालें मंगाकर ये फरमान उनकी गद्दियों में रखकर सी दिए और जिस ढाल में सरदार के नाम का फरमान था, वह उसी सरदार के पास बेचने के लिए भेजा और बेचने वालों को कह दिया कि वह जिस दाम में लें, दे आना, नफे-नुक्सान का ख्याल न करना। फिर कई फीरोजियां शेरशाही खजाने से लेकर कुछ तो अपने पास रख लीं और बाकी अपने आदमियों के हाथ राव जी से उर्दू बाजार में सजवाकर सस्ते दामों में बिकवा डालीं। इस तरह राव जी के सरदारों ने लड़ाई की जरूरत से ढालें सस्ती महंगी खरीद लीं।
यह कार्रवाई करके रात को बैरम जी राव मालदेव की खिदमत में हाजिर हुआ और अर्ज की कि आपने मेड़त मुझसे छीन लिया और बीकानेर के राव जैसती को मार डाला। लिहाजा अगर हम शेरशाह से मिल जाएं तो यह हमारे लिए बिल्कुल ठीक बात होगी, पर आपके सरदार उससे क्यों मिलने जाएं? गालिबन उन्होंन खूब रिश्वत ली है।
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