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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


राव जी– ‘‘अजी, मुझे तो इसकी खबर नहीं। इसका कोई सबूत भी है?’’

बैरम जी– ‘‘सबूत क्यों नहीं? अपने सरदारों की ढालें तो देखिए। उनकी गद्दियों में बादशाह के फरमान हैं। इसके अलावा लाखों फिरोजियां बादशाह से ली गई हैं। क्या बाजार में न बिकी होंगी?’’

बैरम जी यह फुलझड़ी छोड़कर चलता बना, पर राव जी फेर में पड़ गए। आदमी भेजकर फिरोजियों का पता चलाया तो वह सब रईसों के पास निकलीं। उनसे पूछा तो जवाब मिला कि अपने ही आदमी बेच गए हैं। दूसरे दिन जब वह सरदार मुजरे को आए तो राव जी ने उनके पास नई-नई ढालें देखकर कहा, यह कहां से आयीं? जवाब मिला कि व्यापारियों से खरीदी गई हैं।

राव जी ने देखने के बहाने से सब ढाले रख लीं। दरबार बर्खास्त हो जाने के बाद उन्हें चिरवाकर देखा तो वही फरमान मिले जिनका जिक्र बैरम जी ने किया था। मुंशी बुलवाकर पढ़वाया तो मजमून भी वही निकला। अब पक्का यकीन हो गया कि सरदार लोग उन्हें जरूर दगा देंगे। इसमें शक नहीं कि बैरम की चाल काम कर गयी, मगर उसका कारण यह नहीं था चाल खुद अच्छी थी बल्कि इसलिए कि राव जी को अपने सरदारों पर पहले से कुछ संदेह था। अगर ऐसा न होता तो वह कुल सरदारों की ढालों में ही यह फरमान छिपाते, क्या उन्हें और कोई जगह न मिलती थी ! और फिर सबके नई-नई ढालें खरीदते। यह बारीकियां राव जी की अक्ल में न आयीं। कुमार राम से तो पहले ही नाराज हो रहे थे, अब सरदारों पर से भी ऐतबार जाता रहा। उसी दम हुक्म दिया कि फौज यहां से कूच करे।

इस हुक्म ने तमाम फौज में खलबली मचा दी। पुरजोश राजपूत अपने-अपने अरमान निकालने की तैयारियां कर रहे थे। कोई तलवार साफ कर रहा था, कोई तीर-कमान का अभ्यास कर रहा था, कोई वर्दी सम्भाल रहा था। सारी फौज में दूसरे दिन लड़ने की खुशी फैली हुई थी कि यकायक राव जी का यह हुक्म निकला।

सरदारों को फौरन खटका हुआ कि राव जी हमसे नाराज हो गए वरना जीती-जिताई लड़ाई छोड़कर यों कूच का हुक्म हरगिज न देते। सबके सब जमा होकर राव जी की खिदमत में हाजिर हुए और अर्ज की कि आप हमारी तरफ से दिल में किसी किस्म की बदगुमानी न रखिए। हम मरते दम तक आपका साथ न छोड़ेंगे। हम लड़कर अपनी जान देंगे मगर मैदान में मुंह न मोड़ेंगे, हम शेरशाह सूरी से हरगिज नहीं मिले। जरूर आपको किसी ने धोखे में डाल दिया है। पर राव जी को यकीन न आया और फौज कूच करने की तैयारी करने लगी।

शेरशाह ने दुश्मन को यों मैदान में भागते देखकर बैरम जी और दूसरे साजिशी सरदारों के हिम्मत दिलाने से राव जी का पीछा किया। जब राव जी बाबरा जिला जैतारन के पास सुम्बल नदीं में उतरे तो उनके सूरमा सरदार जेता और कोंपा ने अर्ज की– ‘‘यहां तक जो जमीन हम पीछे छोड़ आए हैं वह आपकी जीती हुई थी और हमारे कब्जे में थोड़े ही दिनों से थी। मगर अब यहां से आगे हमारे पुरखों की जायदाद है। हम ऐसे कपूत नहीं हैं कि अपने बाप-दादा के मुल्क को यों सहज में छोड़कर चले जाएं। आप जाते हैं, खुशी से जाइए, हम तो शेरशाह से यहीं जमकर लड़ेंगे। वह भी तो देखे कि राजपूत जमीन के लिए कैसी बेदर्दी से लड़कर जान देते हैं।’’

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