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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


राव जी के कहा– ‘‘यहां लड़ना फिजूल है। अब चले हैं तो जोधपुर ही पहुंच कर लड़ेंगे।’’ मगर जेता और कोंपा ने न माना। वे अपने दस हजार जान पर खेलने वाले बहादुर राठौरों को लेकर पलटे और बादशाही फौज पर पिल पड़े और ऐसा जी तोड़कर लड़े कि बादशाह समझा, अब हारा, अब हारा। मगर दस हजार राजपूत पचास हजार आदमियों के मुकाबिले में क्या कर सकते थे। हां, उन्होंने उस राजपूती दिलेरी का नमूना दिखा दिया जो फतेहपुर सीकरी. हल्दीघाटी, चित्तौंड़गढ़ के मैदानों में बार-बार जाहिर हो चुकी है और अगरचे सब के सब खेत रहे मगर अपनी बहादुरी का सिक्का बादशाह के दिल पर जमा गए। शेरशाह ने खुदा को दोहरा शुक्रिया अदा किया और सरदारों से कहा– ‘‘बड़ी खैरियत हुई वरना मुट्ठी-भर बाजरे के लिए हिन्दोस्तान की सल्तनत हाथ से गई थी।’’

दूसरे दिन हार की खबर पाकर राव जी ने सेवाने की तरफ बांग मोड़ी जोधपुर को लिखा कि किले की खूब तैयारी करो और रानियों को हमारे पास भेज दो। रूठी रानी को भी यही पैगाम दे दो। किलेदार ने हुक्म पाते ही सब रानियों को सेवाने भेज दिया। जोधपुर से पश्चिम में तीस कोस की दूरी पर यह जगह है। और खुद किला दुरुस्त करके लड़ने-मरने के लिए तैयार हो बैठा। जो राठौर सरदार राव जी की बदगुमानी से दुःखी होकर अलग हो गए थे, और कुछ वे जो जेता और कोंपा के साथियों में से बच रहे थे, वे सब मिलकर रूठी रानी की खिदमत में हाजिर हो गए। इस तरह रानी के पास जान पर खेलने वालों की एक खासी जमात तैयार हो गयी। रानी ने बावजूद किलेदार के लगातार तकाजों के कोसाने से कूच न किया।

शेरशाह खुद तो न आया मगर उसने अपने सरदार खवास खां को पांच हजार सिपाहियों के साथ जोधपुर फतेह करने के लिए भेजा। उसने आकर किला घेर लिया। किलेदार उससे कई दिन तक लड़ा मगर अब किले का सब पानी खर्च हो चुका तो उसने दरवाजा खोल दिया और एक घमासान लड़ाई लड़कर मर गया। किले पर खवास खां का कब्जा हो गया। इस तरह राव जी की बदगुमानी और बुजदिली ने दुश्मनों के हाथ में जबरदस्ती फतेह का झंडा दे दिया।

जेता और कोंपा के मारे जाने के बाद भी राव जी के पास सत्तर हजार सिपाही थे। अगर बजाए सेवाने के जोधपुर आते और सारी ताकत से मुकाबला करते तो यकीन था कि बादशाह की हार होती किन्तु यह नौबत आ गई कि पांच हजार आदमियों ने जोधपुर घेरा डालकर जीत लिया। राजपूतों ने जहां असीम वीरता दिखाई है वहां बहुत बार रणनीति के अपने अज्ञान का सबूत भी दिया है।

खवास खां ने किले पर अपना कब्जा जमाकर फौज का एक हिस्सा बीकानेर को रवाना कर दिया वह राव जैसती के लड़के कल्यानमल को गद्दी पर बिठा दे। इसी तरह बैरम जी के साथ भी थोड़ी-सी फौज मेड़ता फतेह करने के लिए भेजी।

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