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सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


विश्वेश्वरराय के तीन बेटियाँ थीं। उनके विवाह हो चुके थे। तीन पुत्र थे, वे अभी छोटे थे। सबसे बड़े की उम्र १॰ वर्ष से अधिक न थी। माताजी जीवित थीं। खानेवाले तो चार थे, कमानेवाला कोई न था। देहात में जिसके घर में दोनों जून चूल्हा जले, वह धनी समझा जाता है। उसके धन के अनुमान में भी अत्युक्ति से काम लिया जाता है। लोगों का विचार था कि विश्वेश्वरराय ने हज़ारों रुपये जमा कर लिये हैं; पर वहाँ वास्तव में कुछ न था। आदमनी पर सबकी निगाह रहती है खर्च को कोई नहीं देखता। उन्होंने लड़कियों के विवाह खूब दिल खोल कर किये थे। भोजन– वस्त्र में मेहमानों और नातेदारों के आदर– सत्कार में उनकी सारी आमदनी गायब हो जाती थी। अगर गाँव में अपना रोब जमाने के लिए दो– चार सौ रुपये का लेन– देन कर लिया था, तो कई महाजनों का कर्ज भी था। यहाँ तक कि छोटी लड़की के विवाह में अपनी ज़मीन गिरों रख दी थी।

साल– भर तक विधना ने ज्यों– त्यों बच्चों का भरण– पोषण किया, गहने बेच कर काम चलाती रही; पर जब वह आधार भी न रहा तब कष्ट होने लगा। निश्चय किया कि तीनों लड़कों को तीनों कन्याओं के पास भेज दूँ। रही अपनी जान उसकी क्या चिन्ता। तीसरे दिन भी पाव भर आटा मिल जायगा तो दिन कट जायँगे। लड़कियों ने पहले तो भाइयों को प्रेम से रखा; किन्तु तीन महीने से ज्यादा कोई न रख सकी। उनके घरवाले चिढ़ाते थे और अनाथों को मारते थे। लाचार हो माता ने लड़कों को बुला लिया।

छोटे– छोटे लड़के दिन– दिन भर भूखे रह जाते। किसी को कुछ खाते देखते तो घर में जाकर माँ से माँगते। फिर माँ से माँगना छोड़ दिया। खानेवालों ही के सामने जाकर खड़े हो जाते और क्षुधित नेत्रों से देखते। कोई तो मुट्ठी भर चबेना निकाल कर देता; पर प्राय: लोग दुत्कार देते थे।

जाड़ों के दिन थे। खेतों में मटर की फलियाँ लगी हुई थीं। एक दिन तीनों लड़के खेत में घुस कर मटर उखाड़ने लगे। किसान ने देख लिया, दयावान आदमी था। खुद एक बोझा मटर उखाड़ कर विश्वेश्वरराय के घर पर लाया और ठकुराइन से बोला– काकी, लड़कों को डाँट दो किसी के खेत में न जाया करें। जागेश्वरराय उसी समय अपने द्वार पर बैठ कर चीलम पी रहा था, किसान को मटर लाते देखा– तीनों बालक पिल्लों की भाँति पीछे– पीछे दौड़े चले आते थे। उसकी आँखें सजल हो गयीं। घर में जाकर पिता से बोला– चाची के पास अब कुछ नहीं रहा, लड़के भूखों मर रहे हैं।

रामे.– तुम त्रिया– चरित्र नहीं जानते। यह सबदिखावा है। जन्म भर की कमाई कहाँ उड़ गयी?

जागे.– अपना काबू चलते हुए कोई लड़कों को भूखों नहीं मार सकता।

रामे.– तुम क्या जानो। बड़ी चतुर औरत है।

जागे.– लोग हमीं लोगों को हँसते होंगे।

रामें– हँसी की लाज है तो जा कर छाँह कर लो, खिलाओ– पिलाओ। है दम!

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