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सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ

मन्दिर

मातृ– प्रेम! तुझे धन्य है! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ– प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने पुआल पर माता का नन्हा– सा लाल पड़ा कराह रहा था। आज तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं। कभी उसे गोद में उठा लेती, कभी पुआल पर सुला देती। हँसते– खेलते बालक को अचानक क्या हो गया, यह कोई नहीं बताता। ऐसी दशा में माता को भूख और प्यास कहाँ? एक बार पानी का एक घूँट मुँह में लिया था, पर कंठ के नीचे न ले जा सकी। इस दुखिया कि विपत्ति का वारपार न था।

साल भर के भीतर दो बालक गंगा जी की गोद में सौंप चुकी थी। पतिदेव पहिले ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ब, जो कुछ था, यही बालक था। हाय! क्या ईश्वर इसे भी उसकी गोद से छीन लेना चाहते हैं?– यह कल्पना करते ही माता की आँखों से झर– झर आँसू बहने लगते थे। इस बालक को वह क्षण भर के लिए भी अकेला न छोड़ती थी। उसे साथ लेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती तो बालक गोद में होता।

उसके लिए उसने नन्हीं– सी खुरपी और नन्हीं– सी खाँची बनवा दी थी। जियावन माता के साथ घास छीलता और गर्व से कहता– अम्माँ, हमें भी बड़ी– सी खुरपी बनवा दो, हम बहुत– सी घास छीलेंगे, तुम द्वारे माची पर बैठी रहना, अम्माँ; मैं घास बेंच लाऊँगा। माँ पूछती– हमारे लिए क्या– क्या लाओगे, बेटा? जियावन लाल– लाल साड़ियों का वादा करता। अपने लिए बहुत– सा गुड़ लाना चाहता था। वे ही भोली– भाली बातें इस समय याद आ– आकर माता के हृदय को शूल के समान बेध रही थीं। जो बालक को देखता, यही कहता कि किसी की डीठ है;

इस विधवा का भी संसार में कोई बैरी है? अगर उसका नाम मालूम हो जाता, तो सुखिया जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ती और बालक को उसकी गोद में रख देती। क्या उसका हृदय दया से न पिघल जाता? पर नाम कोई नहीं बताता। हाय! किससे पूछे, क्या करें?

तीन पहर रात बीत चुकी थी। सुखिया का चिन्ता– व्यथिक चंचल मन कोठे– कोठे दौड़ रहा था। किस देवी की शरण जाय, किस देवता की मनौती करे, इस सोच में पड़े– पड़े उसे एक झपकी आ गयी। क्या देखती है कि उसका स्वामी आकर बालक के सिरहाने खड़ा हो जाता है और बालक के सिर पर हाथ फेरकर कहता है– रो मत, सुखिया! तेरा बालक अच्छा हो जायेगा। कल ठाकुर जी की पूजा कर दे, वही तेरे सहायक होंगे। यह कहकर वह चला गया।

सुखिया की आँख खुल गयी अवश्य ही उसके पतिदेव आये थे। इसमें सुखिया को जरा भी संदेह न हुआ। उन्हें अब भी मेरी सुधि है, यह सोच कर उसका हृदय आशा से परिप्लावित हो उठा। पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम से उसकी आँखें सजल हो गयीं। उसने बालक को गोद में उठा लिया और आकाश की ओर ताकती हुई बोली– भगवान्! मेरा बालक अच्छा हो जाए तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी। अनाथ विधवा पर दया करो।

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