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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


सुमन ने कहा– कहला देना कि यहां नहीं है।

भोली का मनोरथ पूरा हो गया– उसे निश्चय हो गया कि सेठ बलभद्रदास जो अब तक मुझसे कन्नी काटते फिरते थे, इस लावण्यमयी सुंदरी पर भ्रमर की भांति मंडराएंगे।

सुमन की दशा उस लोभी डाक्टर की-सी थी, जो अपने किसी रोगी मित्र को देखने जाता है और फीस के रुपए अपने हाथों में नहीं लेता। संकोचवश कहता है, इसकी क्या जरूरत है, लेकिन रुपए जब उसकी जेब में डाल दिए जाते हैं, तो हर्ष से मुस्कराता हुआ घर की राह लेता है।

१२

पद्मसिंह के एक बड़े भाई मदनसिंह थे। वह घर का कामकाज देखते थे। थोड़ी-सी जमींदारी थी, कुछ लेन-देन करते थे। उनके एक ही लड़का था, जिसका नाम सदनसिंह था। स्त्री का नाम भामा था।

मां-बाप का इकलौता लड़का बड़ा भाग्यशाली होता है। उसे मीठे पदार्थ खूब खाने को मिलते हैं, किंतु कड़वी ताड़ना कभी नहीं मिलती। सदन बाल्यकाल में ढीठ, हठी और लड़ाकू था। वयस्क होने पर वह आलसी, क्रोधी और बड़ा उद्दंड हो गया। मां-बाप को यह सब मंजूर था। वह चाहे कितना ही बिगड़ जाए, पर आंख के सामने से न टले। उससे एक दिन का बिछोह भी न सह सकते थे। पद्मसिंह ने कितनी बार अनुरोध किया कि इसे मेरे साथ जाने दीजिए, मैं इसका नाम अंग्रेजी मदरसे में लिखा दूंगा, किंतु मां-बाप ने कभी स्वीकार नहीं किया। सदन ने अपने कस्बे ही के मदरसे में उर्दू और हिंदी पढ़ी थी। भामा के विचार में उसे इससे अधिक विद्या की जरूरत नहीं थी। घर में खाने को बहुत है, वन-वन पत्ती कौन तुड़वाए? बला से न पढ़ेगा, आंखों से देखते तो रहेंगे।

सदन अपने चाचा के साथ जाने के लिए बहुत उत्सुक रहता था। उनके साबुन, तौलिए, जूते, स्लीपर, घड़ी और कालर को देखकर उसका जी बहुत लहराता। घर में सब कुछ था; पर यह फैशन की सामग्रियां कहां? उसका जी चाहता, मैं भी चचा की तरह कपड़ों से सुसज्जित होकर टमटम पर हवा खाने निकलूं। वह अपने चचा का बड़ा सम्मान करता था। उनकी कोई बात न टालता। मां-बाप की बातों पर कान न धरता, प्रायः सम्मुख विवाद करता। लेकिन चचा के सामने वह शराफत का पुतला बन जाता था। उनके ठाट-बाट ने उसे वशीभूत कर लिया था। पद्मसिंह घर आते तो सदन के लिए अच्छे-अच्छे कपड़े और जूते लाते। सदन इन चीजों पर लहालोट हो जाता।

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