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धर्म एवं दर्शन >> आदित्य हृदय स्तोत्र

आदित्य हृदय स्तोत्र

अगस्त्य ऋषि

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :34
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9544

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राम रावण युद्ध के समय अगस्त्य ऋषि द्वारा बतलाई गई सूर्य आराधना। शक्ति और सामर्थ्य की प्राप्त के लिए की जाने वाली आराधना।


आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो    भानुर्हिरण्यरेता     दिवाकरः।।10।।
हरिदश्वः     सहस्रार्चिः         सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।11।।
हिरण्यगर्भः      शिशिरस्तपनोऽहस्करो      रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः   पुत्रः   शंखः    शिशिरनाशनः।।12।।
व्योमनाथस्तमोभेदी          ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां     मित्रो       विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।13।।
आतपी    मण्डली    मृत्युः   पिंगलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो    महातेजा    रक्तः    सर्वभवोद् भवः।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो                  विश्वभावनः।
तेजसामपि  तेजस्वी  द्वादशात्मन्  नमोऽस्तु ते।।15।।


adityah savita suryah khagah pusha gabhastiman |
suvarnasadrisho bhanur-hiranyareta divakarah || 10
haridashvah sahasrarchih saptasapti-marichiman |
timironmathanah shambhu-stvashta martanda amshuman || 11
hiranyagarbhah shishira stapano bhaskaro ravihi |
agni garbho'diteh putrah shankhah shishira nashanaha || 12
vyomanathastamobhedi rigyajussamaparagaha |
ghanavrishtirapam mitro vindhya-vithiplavangamaha || 13
atapi mandali mrityuh pingalah sarvatapanaha |
kavirvishvo mahatejah raktah sarva bhavodbhavaha || 14
nakshatra grahataranam-adhipo vishva-bhavanah |
tejasamapi tejasvi dvadashatman namo'stu te || 15

'इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत् को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भु (कल्याण के उदगम स्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग्, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यवीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। (इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव !) आपको नमस्कार है।' ।।10-15।।

He is the Son of Aditi (the mother of creation), the Sun God who transverser the heavens, he is of brilliant golden color, the possessor of a myriad rays, by illuminating all directions he is the maker of daylight. He is the all pervading, shining principle, the dispeller of darkness, exhibiting beautiful sight with golden hue. He has seven horses yoked to his Chariot, shines with brilliant light having infinite rays, is the destroyer of darkness, the giver of happiness and prosperity, mitigator of the sufferings and is the infuser of life. He is the Omnipresent One who pervades all with immeasurable amount of rays. He is Hiranyagarbha born of Aditi of a golden womb, He is Sisirastapana the destroyer of the cold, snow and fog, illuminator, Ravi, bearer of the fire and conch, He is the remover of ignorance and giver of fame. He is the Lord of the firmament and ruler of the sky, remover of darkness. the master of the three vedas Rig, Yaju, Sama, he is a friend of the waters (Varuna) and causes abundant rain. He swiftly courses in the direction South of Vindhya-mountains and sports in the Brahma Nadi. He, whose form is circular and is colored in yellow and red hues, is intensely brilliant and enegetic. He is a giver of heat, the cause of all work, of life and death. He is the destroyer of all and is the Omniscient one sustaining the universe and all action. He is the lord of the constellations, stars and planets and the origin of every thing in the universe. Salutations to Aditya who appears in twelve forms (in the shape of twelve months of the year) and whose glory is described in his twelve names. 10-15

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