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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- स्मृति चिपक जाती है या संस्कार?

उत्तर-- एक ही बात है, कुछ भी कह सकते हैं। इंप्रेशंस की है--संस्कार कह लें स्मृति कह लें क्योंकि हम स्मृति उसको कहते हैं जो हमको याद है और अनेक संस्कार हमको ऐसे हैं जो हमको याद नहीं हैं। लेकिन जो हमें याद नहीं हैं वह भी हमारे अवचेतन में मौजूद हैं और सब याद किए जा सकते हैं। मैं भी वहां प्रयोग किया। तो आपको पिछले जन्म याद दिलाए जा सकते हैं। एक पूरी स्मृति धारा याद हो जाएगी आपको एक-एक पर्दा भीतर मौजूद है, उघाड़ा जा सकता है। और आपको फिल्म की तरह सब दोहराने लगेगा, यह हुआ, यह हुआ। और अगर आपकी सारी स्मृति उघाड़ दी जाए तो आप हैरान होंगे, एक दफा जो संस्कार पड़ा है चित्त पर वह मौजूद है। सब संस्कार स्मृति में है। और सच तो यह है कि अगर मैं आपसे अभी पूछूं कि उन्नीस सौ पचास में एक जनवरी को आपने क्या किया, आपको कुछ याद नहीं हैं। आप कहेंगे, इसकी तो विस्मृति हो गई। इसकी विस्मृति नहीं हुई, या अभी मौजूद है। और मैं अभी आपको बेहोश करूं, हिप्नोटाइज करूं और आपसे पूछूं तो आप एक तारीख को ऐसे दोहरा देंगे जैसे अभी देख रहे हैं।

मैं कुछ दिन प्रयोग करता था तो मैं बहुत हैरान हुआ। वह तो कुछ भूलता ही नहीं है। फिर मुझे यह दिक्कत हुई कि पता नहीं एक तारीख को आपने किया या नहीं, या बेहोशी में आप कुछ भी अनर्गल बोलते हैं। फिर मैं कुछ लोगों पर नियमित रूप से ध्यान रखा। उनसे आज मिला तो नोट कर लिया कि उनसे मेरी क्या बात हुई, कि वे क्या कर रहे थे। छह महीने बाद उनको बेहोश करके पूछा, वह तो उन्होंने बताया कि आप दो बजे मुझसे मिले थे और यह मुझसे कहा था। होश में तो उनको पता नहीं कि आप उस दिन उनसे मिले भी थे या नहीं मिले थे।

फिर मैं धीरे-धीरे पिछले जन्मों में भी प्रयोग किया। आप हैरान होंगे, मां के गर्भ में भी आप पर जो संस्कार पडे़ हैं, वे स्मरण दिलाए जा सकते हैं। जिस क्षण कंसेप्शन हुआ मां के पेट में आपका, वे संस्कार भी स्मरण दिलाए जा सकते हैं। फिर धीरे से उस पर, उस जन्म के भी जो संस्कार है वे भी स्मरण दिलाए जा सकते हैं। सारे जन्म-मरण की पूरी कथाएं स्मरण आ सकती हैं। वह सब मेमोरी है। और अगर मेमोरी से कोई बिलकुल मुक्त हो जाए तो वह निर्जरा है। अगर ये सारी मेमोरीज ढह जाए और इनसे व्यक्ति पृथक हो जाए और जान ले कि मैं इन मेमोरीज में नहीं हूं, मैं इनके बाहर और अलग हूं। और अगर यह कंडीशनिंग जो मेमोरीज से पैदा हुई है ये सब विसर्जित हो जाए तो मोक्ष है। स्मृति से मुक्त होना मोक्ष है, और स्मृति में भूलना संसार है। उस स्मृति के विसर्जन में जो भी है वह दिखेगा। स्मृति के विसर्जन में चैतन्य का जागरण है। इसके प्राथमिक प्रयोग विचार के विसर्जन से शुरू होंगे, क्योंकि स्मृति भी केवल विचार के प्रवाह का अंग है, और कोई खास बात नहीं है।

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